अंगारक चतुर्थी 2021 : कर्ज और रोग से मुक्‍त‍ि द‍िलाता है अंगारक चतुर्थी का व्रत, जानिए महत्व और पूजा-विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अंगारक चतुर्थी व्रत है। इसके अलावा फाल्गुन मास की इस संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। मंगल ग्रह से सम्बंधित दोषों से मुक्ति दिलाने वाली अंगारकी गणेश चतुर्थी का पर्व 2 मार्च, मंगलवार को मनाया जा रहा है। यह चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित है और इस दिन विघ्न विनाशक भगवान गणेश की पूजा की जाती है। आज के दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। इसमें व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि व्रत करने से वर्ष भर के चतुर्थी व्रत का फल प्राप्त होता है। आइए जाने की अंगारक चतुर्थी का क्या महत्व होता है और इस दिन किस तरह से गणपति जी की पूजा करनी चाहिए।

शुभ मुहूर्त
संकष्टी चतुर्थी 2 मार्च 2021, मंगलवार को पड़ रही है। इसका आरंभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 46 मिनट से है जो अगले दिन अर्थात 03 मार्च की, बुधवार की रात 02 बजकर 59 मिनट तक मनाई जायेगी।

अंगारक चतुर्थी का महत्व
इसे द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। मान्यता है कि द्विजप्रिय गणपति के स्वरूप में भगवान गणेश के चार मस्तक और चार भुजाएं हैं। भगवान गणेश के इस स्वरूप की अराधना करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट समाप्त होते हैं। भगवान गणेश की कृपा से अच्छी सेहत और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। विनायक चतुर्थी पर भगवान गणपति की पूजा विधि-विधान से करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चतुर्थी के दिन का व्रत बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है। इस व्रत को करने वाले के हर तरह के कर्ज व रोग प्रभु की कृपा से दूर हो जाते हैं।

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व्रत और पूजन विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान गणेश का स्मरण करें और उनके समक्ष व्रत का संकल्प लें। इसके बाद गणेश की प्रतिमा को जल, रोली, अक्षत, दूर्वा, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें। अब केले का एक पत्ता या एक थाली ले लें। इस पर रोली से त्रिकोण बनाएं। त्रिकोण के अग्र भाग पर एक घी का दीपक रखें। बीच में मसूर की दाल व सात लाल साबुत मिर्च रखें। इसके बाद अग्ने सखस्य बोधि नः मंत्र या गणपति के किसी और मंत्र का का कम से कम 108 बार जाप करें। गणेशजी को सिंदूर चढ़ाएं और ऊं गं गणपतयै नम: का जाप करते हुए गणपति जी के मस्तक पर 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। इसके बाद 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। व्रत कथा कहें या सुनें और आरती करें। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलें।



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