तमिलनाडु का कांचीपुरम दुनिया के सात सबसे पुराने शहरों में से एक है। यहां कई मंदिर हैं। उनमें से भगवान विष्णु का वरदराज मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। वरदराज पेरुमल मंदिर में भगवान विष्णु को देवराजस्वामी के रूप में पूजा जाता है। सन 1053 में चोलों ने वरदराज पेरुमल मंदिर बनवाया था। कुलोत्तुंग प्रथम और विक्रम चोल ने इस मंदिर का पुनरुद्धार करवाया था। इस मंदिर में 100 खंभों वाला एक हॉल है। जिसे विजयनगर के राजाओं ने बनवाया था। इस मंदिर में 9 फीट ऊंची भगवान विष्णु की अद्भूत मूर्ति है। जो एक खास परंपरा के चलते 40 साल तक तालाब में रखी जाती है। बावजूद इसके वो मूर्ति कभी खराब नहीं होती।
ब्रह्मा जी ने स्थापित की थी मूर्ति
मंदिर प्रशासन से जुड़े लोगों का कहना है कि कांचीपुरम ब्रह्मा जी के यज्ञ की भूमि है। वे एक बार यहां यज्ञ करने आए थे। तब भगवान विष्णु की इस मूर्ति की स्थापना खुद ब्रह्मा जी ने की थी। पुराणों में कांचीपुरम का नाम हस्तगिरी बताया गया है। भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी पर भगवान विष्णु के दर्शन की इच्छा जताई और उन्हें प्रसन्न करने के लिए तप शुरू किया। इसके लिए ब्रह्माजी के कहने पर विश्वकर्मा ने अंजीर की लकड़ियों से भगवान विष्णु की 9 फीट की प्रतिमा तैयार की थी। भगवान के इस रूप को अत्ति वरदराज कहा गया। तमिल भाषा में अत्ति का अर्थ है अंजीर की लकड़ी, वरदराज मतलब होता है हर तरह का वरदान देने वाले।
अंजीर की लकड़ी से बनी मूर्ति
अत्ति वरदराज की मूर्ति लकड़ी की बनी है। इस मूर्ति की खासियत ये है कि जलवास परंपरा के चलते इस 40 साल तक मंदिर के ही तालाब में रखा जाता है। लगातार पानी में रहने के बावजूद भी ये खराब नहीं होती है। सालों से चली आ रही जलवास परंपरा के बावजूद मूर्ति के मूल स्वरुप में बदलाव नहीं हुआ है।
- खास बात ये है कि मूर्ति को पानी और नमी से बचाने के लिए के लिए किसी भी तरह का कोई लेप या कैमिकल इस्तेमाल नहीं किया जाता है। प्रतिमा को पानी से जिस तरह निकाला जाता है, वैसे ही फिर रख दिया जाता है। मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों का कहना है कि जब मूर्ति बनाई गई होगी, तब हो सकता है इसमें ऐसी धातु या कोई चीज मिलाई गई होगी, जिससे ये पानी में भी खराब नहीं होती।
अद्भूत शिल्प कला: पत्थरों से बनी सांकल और 100 पिलर वाला हॉल
भव्य और विशालकाय वरदराज पेरुमल मंदिर कारीगरों की कला का सबसे अच्छा नमूना है। यह मंदिर उस काल के कारीगरों की कला का जीता जागता उदाहरण है। ये मंदिर करीब 23 एकड़ क्षेत्र में बना है। इसमें दो सरोवर सहित कुछ छोटे मंदिर भी हैं। इस मंदिर में करीब 100 पिलर वाला हॉल है। इसके गोपुरम में पत्थरों से बनी सांकल है। कई सालों पहले चट्टानों को काटकर खास तरीके से ये सांकल बनाई गई हैं। जो कला का बेहद उम्दा नमूना है। इस दौर में पत्थरों का उपयोग कर के ऐसी चेन बनाना लगभग नामुमकिन ही है।
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