श्रीराम का जिक्र होते ही रामसेतु का नाम भी जेहन में आ जाता है। राम इसी पुल से भारत से श्रीलंका तक पहुंच सके थे और रावण को परास्त किया था। कहा जाता है कि इस पुल को नल और नील नामक वानरों से बनाया था। उन्होंने पत्थरों पर राम लिखवाया और इनसे समुद्र में मीलों लंबा पुल तान दिया। हैरत की बात यह है ये पत्थर पानी में नहीं डूबे।
यह भी साबित हो चुका है कि रामसेतु काल्पनिक नहीं है बल्कि यह आज भी समुद्र के नीचे विद्यमान है। वैज्ञानिक भी इसे एक चमत्कार के रूप में स्वीकार कर चुके हैं। सदियों पहले आए तूफान से रामसेतु समुद्र के अंदर चला गया। हालांकि अमेरिका के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान नासा ने सैटेलाइट की सहायता से रामसेतु को ढूंढ निकाला।
राम सेतु के रूप में भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में आज भी यह भू भाग मौजूद है। ताजा रिसर्च के अनुसार यह करीब 48 किलोमीटर चौड़ी पट्टी है।
भारतीय सेटेलाइट और नासा ने उपग्रह से इसकी फोटो भी ली। इन तस्वीरों को जारी करने के बाद रामसेतु के अस्तित्व को दुनियाभर में स्वीकार कर लिया गया।
पौराणिक धर्म ग्रंथों में रामसेतु के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके
अनुसार नल नील ने महज पांच दिनों में रामसेतु का निर्माण कर दिया था।
जो पत्थर पानी में नहीं डूबे और तैरते रहे, उनपर भी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहें हैं। रामसेतु और इसमें लगे पत्थरों पर रिसर्च से कई चौंकानेवाले तथ्य भी उजागर हुए हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार रामसेतु में प्यूमाइस स्टोन का उपयोग किए जाने का अनुमान है। ये पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैैं। इन पत्थरों में कई छिद्र यानि छेद होते हैं। छेद होने के कारण ये पत्थर स्पंजी या खांकरा का रूप ले लेते हैं और यही वजह है कि पानी में नहीं डूबते। इन पत्थरों का वजन भी सामान्य पत्थरों की तुलना में बहुत कम होता है।
रामसेतु के पत्थरों को अब लैब में भी बनाए जाने की कोशिश की जा रही है। दो साल पहले एमपी के उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय और शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज में रिसर्च कर इन पत्थरों को लैब में बनाने की कोशिश प्रारंभ की जा चुकी हैै।
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