एक बार फिर एक देश-एक चुनाव पर सियासी चर्चा तेज है। पहले 18 सितंबर से प्रस्तावित संसद के विशेष सत्र में इससे जुड़े संविधान संशोधन बिल लाने की बात हुई। मगर बाद में इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक कमिटी का गठन किया गया, जो इसके लिए संभावना तलाशेगी और आगे के रोडमैप पर काम करेगी। तभी से इसके तमाम पहलुओं पर चर्चा की जा रही है। पक्ष-विपक्ष के बीच इस मुद्दे पर बयानबाजी भी दिख रही है। लेकिन इन सब चीजों से अलग अगर सिर्फ मुद्दे की बात करें तो कोई इशू कोई पहली बार नहीं उठा है। इतना साफ है कि अगर इसे हकीकत में लाना है तो उससे पहले कई कठिन चुनौतियों से गुजरना होगा।
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