इंदौर में पेश होगी समरसता की अनूठी मिसाल

मोहिच पांचाल
इंदौर। आधुनिक दौर में कई जगहों पर आज भी छुआछूत की भावना जिंदा है। कहीं पर दलित दुल्हे के मंदिर में प्रवेश पर रोक है तो तो कहीं शव को सार्वजनिक श्मशानों में जलाने नहीं दिया जा रहा है। ऐसे लोगों को इंदौर का एक
पुराना गांव करारा जवाब देने जा रहा है। दलित व बंजारा सहित कई बड़े समाज एक साथ गांव गेर माता का पूजन करेंगे तो एक ही पंगत में भोजन भी होगा।

समरसता की ये मिसाल इंदौर के पुराने गांव पीपल्याराव में पेश होने जा रही है। जहां पर पूर्व विधायक मनोज पटेल और उनका परिवार भी रहता है। 150 साल बाद यहां पर गेर गांव माता का पूजन होने जा रहा है। मान्यता है कि माता का पूजन करने से गांव पर आने वाली आपदा-विपदा टल जाती है। माता खुद अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। उसी परंपरा को मानते हुए यहां पर 5 जून को भव्य आयोजन होने जा रहा है जिसके कार्यक्रमों की शुरुआत आज से हो रही है। गांव की महिलाएं सिर पर सिगडिय़ां लेकर शोभायात्रा में शामिल होंगी। इससे पहले उन्होंने माता पूजन की इन सिगडिय़ों को भी तैयार किया है। हर घर में महिलाओं ने अपनी -अपनी सिगड़ी तैयार कर ली है और उसे आकर्षक सजाया भी है।

मुख्य पूजा वाले दिन सुबह 3 बजे गांव के प्रमुख भेरूङ्क्षसह पटेल पूजा की शुरुआत करेंगे जिसके बाद पूरा गांव पूजन करने पहुंचेगा। ये आयोजन सामाजिक समरसता की एक बड़ी मिसाल है, क्योंकि गांव में दलित, बंजारा, धाकड़, यादव, लोधा, मुराई-मौर्य और ब्राह्मण समाज भी शामिल रहता है। ये सभी पूजन के कार्यक्रम में शामिल होंगे।तड़के शुरू हुई पूजा सुबह तक चलेगी। बाद में पूरे गांव का सामूहिक भोज होगा जिसमें एक ही पंगत में सभी साथ में बैठेंगे। बड़ी बात ये है कि परोसगारी में गांव के युवाओं की ड्यूटी लगाई गई है। बकायदा शाम को भी भोजन होगा। गौरतलब है कि गांव गेर माता का पूजन सभी जगह होता है, लेकिन अधिकांश जगहों पर कुछ ही समाज उसमें सहभागिता करते हैं।

सभी उठा रहे हैं खर्चा
पीपल्याराव पूर्व में बड़ा गांव हुआ करता था, लेकिन शहर से लगा होने की वजह से तेजी से नई कॉलोनियों का विकास हो गया। आयोजक हंसराज पटेल के मुताबिक शहरी क्षेत्र में होने के बावजूद मूल गांव का वजूद और स्वरूप अभी भी बाकी है। 200 से अधिक घर हैं जिसमें सभी वर्गों के लोग शामिल हैं। प्रत्येक परिवार ने साढ़े पांच हजार रुपए का सहयोग किया है। कई परिवार ऐसे थे जो पूजा और भंडारे का खर्च उठाने के लिए तैयार थे, लेकिन सभी ने तय किया कि जो भी खर्चा होगा मिलकर उठाएंगे।

ये है परंपरा
गांव के मंदिर में बड़ा आयोजन होता है जिसमें पूजन के दिन महिलाए अपने भाई को बुलाती हैं। महिलाएं तैयार की गई सिगड़ी को सिर पर रखकर मंदिर जाती हैं और भाई उसे उतारकर माता को अर्पित करता है। घर पहुंचने पर भाई
अपनी बहन को उपहार भी देता है।



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