नई दिल्ली : दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे; जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों। मशहूर शायर बशीर बद्र ने शायद ऐसे ही मौकों के मद्देनजर हमें आगाह किया है। 'दोस्ती और दुश्मनी में सब जायज है' की फिलॉसफी के उलट बशीर साहब ने हमें इसलिए सतर्क किया कि भावना और तात्कालिक उन्माद आपको स्थायी तनाव दे सकता है। अब राहुल गांधी और स्मृति इरानी की इस तस्वीर को ही ले लीजिए। चुनाव मैदान में स्मृति इरानी ने राहुल गांधी को परास्त कर उत्तर प्रदेश से सीधे केरल की यात्रा करवा दी। दोनों प्रदेशों के बीच अच्छी-खासी दूरी है, लेकिन क्या इतनी ही दूरी दोनों नेताओं के दिलों के बीच भी है? इसका सटीक जवाब सदियों तक राजनीति की भट्ठी में तपकर निकले एक कहावत में छिपा है- राजनीति में कभी, कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। पीएम का संदेश- चुनावी माहौल से निकल साथ आएं सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तो आज संसद के बजट सत्र की शुरुआत से पहले अपने संदेश में यही कहा। पीएम ने भी आगाह किया कि चुनावों का मौसम है तो सांसद इसमें मतवाले होकर राष्ट्रहित की अनदेखी न कर दें। चुनावी मौसम में तो राजनीति के गलियारे में पतझड़ और बसंत एक साथ आते हैं। नेताओं के पाला बदलते ही एक तरफ टूटे हुए दिल मिल जाते हैं, दूसरी तरफ लंबे समय का साथी बिछड़ जाता है। ऐसा राजनीति में अक्सर होता है और चुनावों में तो बहुत ज्यादा। इसीलिए प्रधानमंत्री ने कहा, 'चुनाव अपनी जगह हैं, वो चलते रहेंगे।' इससे पहले पीएम ने सभी दलों और सांसदों से मिल-बैठकर, दिलों से दूरियां मिटाकर राष्ट्रहित में 'उत्तम चर्चा' करने की अपील की। आखिर क्या कहती है यह तस्वीर यह तस्वीर पीएम मोदी के संदेश के बाद आई है। संसद भवन में बजट सत्र के पहले दिन नेताओं का जमावड़ा हुआ तो एक ही पंक्ति में खड़े स्मृति और राहुल पर कैमरे की नजर पड़ गई। फिर यह तस्वीर सामने आई जिसमें स्मृति की नजर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी राहुल पर है जबकि राहुल कहीं और देख रहे हैं। यह तस्वीर बताती है कि राजनीति में आप चाहकर भी अपनी 'स्मृति' से अपने प्रतिद्वंद्वी को हटा नहीं सकते, भले उसके कारण आपके संसदीय क्षेत्र का 'स्थायी' पता ही क्यों ना बदल जाए। स्मृति ने अमेठी में राहुल को लंबे अर्से बाद हराया और अब वो वायनाड के सांसद हैं। बजट के बाद सरकार को कैसे देखेगी जनता? बहरहाल, प्रधानमंत्री की अपील के अनुसार हरेक देशवासी को उम्मीद होगी कि यह संसद सत्र हंगामे की भेंट नहीं चढ़ेगा और यह सार्थक चर्चा का गवाह बनेगा। वैसे भी यह बजट सत्र है तो इस पर देशवासियों की खास नजर रहेगी। मंगलवार को आने वाला बजट भी तय करेगा कि कौन से लोग सरकार को किस निगाह से देखेंगे। जनता चेहरे मुस्कान के साथ सरकार को सराहेगी या फिर तनी हुई भौहें को साथ उसे कोसेगी। उन तस्वीरों के लिए बजट पेश होने का इंतजार करना होगा।
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