ओम का रहस्य: शास्त्रों में बताई गई है इसकी महिमा, जानें इसका महत्व

अनंत शक्ति का प्रतीक...ब्रह्माण्ड का सार माना गया है ओम यानि ‘ॐ’ को। ब्रह्माण्ड की सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रभावी ध्वनियों में से एक माना गया है ओम को। ओंकार ब्रह्मनाद है, इसके उच्चारण व जाप से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। ओम ध्वनि एक शाश्वत ध्वनि है। ओम एक ऐसी ध्वनि है, जो किसी ने बनाई नहीं है। जो ध्वनि टकराहट से पैदा नहीं होती, वह स्वयंभू ध्वनि है। इसे ही ‘अनहद नाद’ कहते हैं। ‘नाद’ का मतलब ध्वनि होता है। यह ईश्वर की ध्वनि है।

यह भी कहा जाता है कि ॐ तीन अक्षरों से बना हुआ है; अ, उ और म। अ से आदि कर्ता ब्रह्म का बोध होता है, उ से विष्णु भगवान का बोध होता है जबकि म से महेश का बोध होता है। यानी ॐ सम्पूर्ण जगत का नेतृत्व करता है। ॐ बोलने से गले में कंपन उत्पन्न होता है, इससे थायराइड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

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शास्त्रों में ओम
ओम पवित्र ध्वनि है। इसका उच्चारण करते समय तीन अक्षरों की ध्वनि निकलती है। ये तीन अक्षर अ+उ+म हैं। इन तीनों अक्षरों में त्रिदेव यानी (ब्रह्मा,विष्णु,महेश) का साक्षात वास माना जाता है। मांडूक्य उपनिषद में कहा गया है संसार में भूत, भविष्य और वर्तमान में एवं इनसे भी परे जो हमेशा हर जगह मौजूद है, वो ओम है। यानी इस ब्रह्माण्ड में हमेशा से था, है और रहेगा। खगोलविद् मानते हैं कि ब्रह्माण्ड में ओम सुनाई देता है। ओम में ही ब्रह्माण्ड का रहस्य समाया हुआ है।

तन्मात्रा में ऊर्जा के विभिन्न स्वरूप
भारतीय सनातन धर्म की प्रकृति में पंचमहाभूतों की श्रेणी या शृंखला मानी जाती है। यह पंचमहाभूत विशेष ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं। जिसमें अग्नि, वायु, आकाश, जल, पृथ्वी ये पांच समाहित होते हैं। इनमें ऊर्जा है। अर्थात जल से जीवन, अग्नि से संकल्प, वायु से क्रियाविधि, आकाश से सुरक्षा और पृथ्वी पर विचरण। मांडूक्य उपनिषद में तन्मात्रा के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। व्यापक तौर पर कहा जा सकता है तन्मात्रा सर्व चेतना का पुंज है, जिसके माध्यम से प्रकृति, प्राणी, मानव और जीवन से संबंधित समस्त क्षेत्र को ऊर्जावान करते हैं। तन्मात्रा विशेषकर ओमकार में निहित है जिसमें अकार, उकार, मकार यह तीन मात्रा है। अलग-अलग गुण के साथ-साथ शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। वेद-उपनिषद भी शक्ति और ऊर्जा की चर्चा करते हैं।

शक्तिशाली ओम
यजुर्वेद में कहा गया है, "ओम स्वयं ब्रह्म" अर्थात् ओम ही सर्वत्र व्यापक परम ब्रह्म है। ओंकार शब्द तीन गुणों का प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं, जिसमें सात्विक, राजसी, तामसी यह तीनों गुण क्रमश: अकार, उकार, मकार से संबंधित हैं। कहा जा सकता है यह क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र एवं महाकाली, महालक्ष्मी और सरस्वती से संबद्ध है। ओम इत्येतत् अक्षर: अर्थात् ओम अविनाश, अव्यय एवं क्षरण रहित है।

ओंकार चेतना है
महर्षि पतंजलि के ग्रंथ योगदर्शन के 27वें सूत्र में कहा गया है, "तस्य वाचक प्रणव:" ईश्वर शब्द का बोध करने वाला शब्द ओम है। ओंकार सिर्फ शब्द ही नहीं भीतर की ऊर्जा को प्रकट करने का साहस भी है। यह चेतना भी है, संकल्प भी है। यह प्रसन्नता का सूत्र सोपान भी है। यह सफलता को देने वाली ऊर्जा भी है। जीवन में अनुकूलता के साथ आगे बढ़ाने की जीवित चेतना या जीवटता इससे संबद्ध होती है।

संपूर्ण सृष्टि का प्रतीक
ओम को संपूर्ण सृष्टि का प्रतीक माना गया है। इसके उच्चारण मात्र से ही जीवन से नकारात्मकता खत्म होती जाती है। मन में भीतर से शांति रहती है। गीता में कहा गया है किसी भी मंत्र से पहले ओम के उच्चारण से पुण्य मिलता है। कठोपनिषद की बात करें, तो इसमें बताया गया है कि ओम शब्द में वेदों और तपस्वियों का सार समाया हुआ है। कठोपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अंतर्गत एक उपनिषद है।

ओम से सेहत
ओम का जाप करते हैं, तो चिंता और तनाव दूर होता है। कई शोधों में यह साबित हो चुका है कि ओम का जाप तनाव के स्तर को कम करता है। इसके नियमित अभ्यास करने से आप खुद को शांत और तरोताजा महसूस करते हैं। वातावरण सकारात्मक होता है।

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हिंदू धर्म में ‘ॐ’ का स्थान सर्वोपरि है. माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से सदा ॐ की ध्वनी निसृत होती रहती है. हमारी और आपके हर श्वास से ॐ की ही ध्वनि निकलती है. यही हमारे-आपके श्वास की गति को नियंत्रित करता है.हिंदू धर्म में सभी मन्त्रों का उच्चारण ऊँ से ही शुरु होता है। किसी देवी-देवता, ग्रह या ईश्वर के मंत्रों के पहले ॐ लगाना आवश्यक होता है, जैसे, श्रीराम का मंत्र - ॐ रामाय नमः, विष्णु का मंत्र - ॐ विष्णवे नमः, शिव का मंत्र - ॐ नमः शिवाय, प्रसिद्ध हैं। माना जाता है कि किसी भी मंत्र से पहले यदि ॐ जोड़ दिया जाए तो वह पूर्णतया शुद्ध और शक्ति-सम्पन्न हो जाता है।


‘ॐ’ का उच्चारण करते वक्त कुछ विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। जानते हैं कि जानकारों के अनुसार ‘ॐ’ करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

‘ॐ’ का उच्चारण प्रातः उठकर पवित्र होकर करना चाहिए।
‘ॐ’ का उच्चारण हमेशा स्वच्छ और खुले वातावरण में ही करना चाहिए।
ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर करना चाहिए।
ॐ का उच्चारण जोर से बोलकर और धीरे-धीरे बोल कर भी किया जा सकता है। ‘ॐ’ जप माला से भी कर सकते हैं।
‘ॐ’ का उच्चारण 5,7,11 या 21 बार करना चाहिए।



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