
एकदंत, विनायक, दुखहर्ता...गणेश भगवान शास्त्रों के अनुसार प्रथम पूजनीय हैं। हिंदू धर्म के अनुसार गणपति को धन, विज्ञान, ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि का देवता माना जाता है। गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था। इसलिए हर साल भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश उत्सव मनाया जाता है। गणेश को वेदों में ब्रह्म, विष्णु एवं शिव के समान आदि देव के रूप में वर्णित किया गया है। इनकी पूजा त्रिदेव भी करते हैं। गण + पति = गणपति। संस्कृतकोशानुसार 'गण' अर्थात पवित्रक। 'पति' अर्थात स्वामी, 'गणपति' अर्थात पवित्रकों के स्वामी।
गणेश उत्सव का उल्लास
भाद्रपद माह में गणेश चतुर्थी से 10 दिन का गणेश उत्सव शुरू होता है। इस बार गणेश चतुर्थी पर रवि योग रहेगा। चतुर्थी का आगमन 18 सितंबर को मध्यांचल 12.40 से होगा और तिथि का समापन मध्यान 1.40 पर होगा। यह तिथि 25 घंटे की रहेगी।

गणेश उत्सव अनंत चतुर्दशी तक चलता है। मान्यता है इन दिनों गणेश जी भक्तों की समस्याओं का हल करते हैं। इस बार गणेश चतुर्थी के दिन विशाखा, स्वाति और वैधृति नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है।
कर्तव्य पालन से लेकर विनम्रता तक
गणेश भगवान को लेकर जो भी पौराणिक कथाएं हैं, उनसे हमें यह सीखने को मिलता है कि अपने कर्तव्य पालन से पीछे न हटें। जैसे कि गणेश भगवान ने कत्र्तव्य पालन करते हुए अपने पिता भोलेनाथ से युद्ध किया। वे हमें विनम्रता का पाठ भी पढ़ाते हैं। उनसे जुड़ी कथाएं इसका उदाहरण हैं।
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गणेश जी की पूजा का है बहुत महत्त्व
ब्रह्म वैवर्त पुराण, स्कंद पुराण तथा शिव पुराण में भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएं मिलती हैं। गणेश जी की पूजा का बहुत महत्त्व माना जाता है। भगवान गणेश सभी प्रकार के दुखों का नाश करते हैं।

शास्त्रों में गणेश जी का वर्णन करते हुए लिखा गया है- जिनकी सूंड वक्र है, जिनका शरीर महाकाय है, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं। ऐसे सब कुछ प्रदान करने में सक्षम शक्तिमान श्री गणेश सदैव मेरे विघ्न हरें। वेदों में कहा गया है- 'नमो गणेभ्यो गणपतिभ्वयश्चवो नमो नम:Ó अर्थात गणों और गणों के स्वामी श्री गणेश को नमस्कार।
हर अंग से मिलती है सीख
गणेश पुराण के अनुसार गणेश जी की दायीं तरफ सूंड होने पर सिद्धि विनायक के रूप में पूजा जाता है। बायीं तरफ सूंड होने पर घर-परिवार में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। विनायक के अंगों से काफी कुछ सीखने को मिलता है। गणपति का बड़ा और चौड़ा माथा नेतृत्व करने का प्रतीक है। गणेश जी की छोटी आंख ध्यान लगाने की सीख देती है। गणेश जी के बड़े कान यह शिक्षा देते हैं कि आप सुनें सबकी, पर अपनी बुद्धि और विवेक से फैसला लें।
गणेश जी का छोटा मुख कम बोलने की प्रेरणा देता है। गणेश जी की सूंड यह शिक्षा प्रदान करती है कि कोई भी सफलता आसानी से नहीं मिलती है। उसके लिए परिश्रम करना पड़ता है। इसके अलावा वे सिखाते हैं माता-पिता सर्वोपरि होते हैं। गणेश जी ने इसका उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने माता-पिता के चक्कर लगाए और पूरी दुनिया उन्हें माना। गणेश भगवान ऋ ग्वेद में वाणी के स्वामी कहे गए हैं।
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