टशन स परशन ह त नम करल बब क इस चज म ह इलज

ईश्वर की प्रार्थना
बहुत सारे लोग अपनी परेशानियों को लेकर नीम करोली बाबा के पास पहुंचते थे। वे खुद को आस्तिक कहते थे और परेशानियां खत्म होंगी या नहीं ये भी सोचते थे। इस पर नीम करोली बाबा का कहना था कि एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकतीं। ईश्वर पर भरोसा और चिंता दोनों साथ नहीं रह सकते। उनका कहना था कि यदि आप ईश्वर पर भरोसा रखते हैं तो चिंता करने की जरूरत नहीं, यदि आप चिंता कर रहे हैं इसका अर्थ हुआ कि आप ईश्वर पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। उनके कहने का अर्थ था कि जो बोएंगे वही काटेंगे, यदि भरोसा करेंगे तो भरोसा कायम रहेगा यानी ईश्वर समस्या का समाधान जरूर करेगा। इसलिए चिंता छोड़कर सिर्फ उसकी प्रार्थना करें, बाकी सब उसी पर और उसके समय पर छोड़ दें।

इससे नहीं होगी चिंता
महाराजजी सबको चिंता से दूर रहने की सलाह देते थे। उनका कहना था कि मनुष्य एक चीज पाने के बाद फिर एक और चीज की लालसा करने लगता है और उसके बाद फिर एक और.. इस चाहत में इतना डूब जाता है कि उसे किसी और चीज का ध्यान नहीं रहता और इसमें देरी या वह न मिलना विकृतियों, दुख, टेंशन को जन्म देता है। लेकिन उसे सोचना चाहिए कि जरूरी नहीं उसे सबकुछ मिले, उसे जरूरत और इच्छा का फर्क भी पता होना चाहिए। साथ ही यह भी पता होना चाहिए, ईश्वर जो करेगा हमारी भलाई के लिए ही करेगा और ईश्वर के मन की बात तो ईश्वर ही जानता है। इसलिए सब कुछ उसी पर छोड़ देना चाहिए। जो हम मांगते हैं, हमेशा वो नहीं मिल सकता। इसलिए यह समझ लेना चाहिए, ईश्वर ने हमारे लिए कुछ अलग सोचा है। अगर यह समझ जाएंगे तो चिंता भी नहीं रहेगी।

कर्मों पर ध्यान दें
प्रारब्ध को लेकर अवधी में एक कहावत है कुछ करनी, कुछ करम गति, कुछ पूर्वज की देन यानी इन तीनों चीजों से मिलकर प्रारब्ध बनता है और भाग्य तय होता है। नीम करोली बाबा का कहना था कि करनी यानी कर्म करना हमारे हाथ में है इसलिए हमें कर्म पर ध्यान देना चाहिए, यदि हम अच्छा कार्य करेंगे तो उसका अच्छा परिणाम जरूर मिलेगा। यदि हमारे कर्म बुरे हैं या हम किसी के बारे में बुरा सोचते हैं तो कर्म बंधन से कटने के पश्चात जो शुभ फल बचता है, सृष्टि वह हमें देती है।

यदि कर्म बहुत ही बुरे रहे थे तो उसका बुरा परिणाम भी मिलता है तब तक जब तक के उसके अनुरूप हम अच्छा काम नहीं कर लेते। वहीं मनुष्य को मिलेजुले परिणाम तब प्राप्त होते हैं जब अच्छे कार्यों के साथ वह अनजाने में कोई गलत काम कर बैठता है। इसलिए हमें अच्छे कार्य को करने पर ध्यान देना चाहिए। महराज जी यह भी कहते हैं कि मनुष्य को ऐसी कामना नहीं करनी चाहिए कि उसका जीवन खराब हो जाए। इसी के साथ वह कहते हैं कि इन सबके साथ चिंता मत करिए बस चिंतन करिए।

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चिंता और चिंतन में अंतर
नीम करोली बाबा का कहना था कि हमें अपना काम ठीक ढंग से करना चाहिए, उसमें सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए। इसका परिणाम क्या मिलेगा, उसके विषय में नहीं सोचना चाहिए, जिसे गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है। क्यों कि परिणाम में आप दखल नहीं दे सकते, इसलिए उसके विषय में क्या सोचना और उसके इर्द गिर्द आपका ध्यान है तो यह चिंता है। लेकिन यदि आप किसी काम को अंजाम देने से पहले किस तरह लक्ष्य को पूरा करें और किस तरह काम को करें यह सोचते हैं तो यह चिंतन है।

महाराजजी का कहना था किसी काम को करने से पहले विचार विमर्श करें यानी उसके हर पहलू पर जरूर सोचें यानी चिंतन जरूर करें। उनका कहना था कि आप व्यवसाय से जुड़े हैं तो भी सब काम अच्छे से करें। काम करने के बाद उसके परिणाम के बारे में न सोचें, उसे भगवान पर ही छोड़ दें। चिंता न करें, चिंतन करें यही चिंतामुक्ति का सबसे प्रमुख नियम है।

सकारात्मक बने रहें
बाबा नीम करोली का कहना था कि मनुष्य के अपने मन में ऐसे विचार नहीं करना चाहिए, जिससे उसे या किसी दूसरे के मन को ठेस पहुंचे। वहीं वह कहते हैं कि इसके अलावा सकारात्मक बने रहें, उम्मीद और ईश्वर पर भरोसा न छोड़ें। न परिश्रम करने में और ईश्वर पर भरोसे में। नकारात्मक चीजों से दूर रहें।



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