Vat Savitri Katha: हिंदू पंचांग अनुसार उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को पड़ता है। ये व्रत वैवाहिक महिलाओं के समृद्ध जीवन के लिए काफी उत्तम माना जाता है। मान्यताओं अनुसार इस व्रत को करने से पति को लंबी उम्र का वरदान मिलने के साथ-साथ उनका जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है। इस पवित्र दिन भर महिलाएं वट पेड़ की विधिवत पूजा करती हैं। इस बार ये व्रत 30 मई को रखा जा रहा है। लेकिन एक चीज ऐसी है जिसके बिना ये व्रत अधूरा माना जाता है वो है इस व्रत की पावन कथा।
वट सावित्री पूजा मुहूर्त (Vat Savitri Puja 2022 Muhurat):
हिन्दू पंचांग अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि 29 मई दिन रविवार की दोपहर 02:56 से
प्रारंभ होगी और इसकी समाप्ति 30 मई दिन सोमवार की शाम 05 बजे होगी। जबकि वट सावित्री
व्रत 30 मई को रखा जाएगा।
वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha)
पौराणिक मान्यताओं अनुसार राजर्षि अश्वपति की एक ही संतान थी जिनका नाम सावित्री था। सावित्री बेहद रूपवान थीं। योग्य वर न मिलने की वजह से उसके पिता दुखी थे। उन्होंने अपनी कन्या सावित्री को स्वयं वर तलाशने के लिए भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगीं। वहां साल्व देश के राजा द्ययुमत्सेन रहते थे उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उन्हीं के पुत्र सत्यवान को सावित्री ने पति के रूप में चुना।
ऋषिराज नारद को जब सावित्री और सत्यवान के विवाह का पता चला तो वो राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा है राजन! ये क्या कर रहे है आप? जिस सत्यवान को आपकी बेटी ने वर रूप में चुना है उसकी आयु बहुत छोटी है। एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। नारद जी की बात सुनकर अश्वपति परेशान हो गए। सावित्री ने पिता की परेशानी का कारण पूछा? तब पिता ने नारद जी द्वारा बताई गई बात सावित्री को बता दी और उनसे कहा कि तुम किसी और को अपना जीवन साथी चुन लो।
सावित्री ने अपने पिता से कहा कि आर्य कन्याएं अपने पति का वरण सिर्फ एक ही बात करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक बार ही होता है। सावित्री बोलीं मैं सत्यावन से ही विवाह करूंगी। पुत्री की बात मानकर राजा अश्वपति ने उनका विवाह सत्यवान से कर दिया।
सावित्री ससुराल पहुंचकर अपने पति और सास-ससुर की सेवा करने लगीं। इस तरह से समय बीतता चला गया और जैसे-जैस सत्यवान की मृत्यु का समय करीब आने लगा वैसे ही सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा बताई गई तिथि पर पितरों का पूजा किया। हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी जंगल में लकड़ियां काटने चले गए। तभी अचानक से उनके सिर में तेज दर्द होने लगा। सावित्री अपना भविष्य समझ गईं।
सत्यवान के सिर को अपनी गोद में रखकर सावित्री ने सत्यवान का सिर सहलाया। तभी अचानक से यमराज आए और वो अपने साथ सावित्री के पति सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे लग पड़ीं। यमराज ने सावित्री को बहुत समझाया लेकिन सावित्री नहीं मानी। सावित्री की निष्ठा को देखकर यमराज सावित्री पर प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि हे देवी तुम धन्य हो। मुझसे कोई वरदान मांगो।
सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हों आंखों की रोशनी प्रदान करें। यमराज ने कहा कि ऐसा ही होगा पर अब तुम लौट जाओ। लेकिन इसके बाद भी सावित्री ने यमराज जी का पीछा नहीं छोड़ा। यमराज ने कहा कि तुम वापस जाओ। इस पर सावित्री जी ने बोला कि मुझे मेरे पति के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। ये सुनकर यमराज ने उनसें फिर से वर मांगने को कहा। फिर सावित्री ने कहा कि मेरे ससुर का राज्य छिन गया है वो उन्हें वापस दिला दें।
यमराज ने ये वरदान भी सावित्री को दे दिया लेकिन फिर भी सावित्री यमराज जी और अपने पति सत्यवान के पीछे चलती रहीं। फिर यमराज ने तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने संतान और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने ये वरदान भी सावित्री को दे दिया। सावित्री ने यमराज से कहा कि हे प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है। ये सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के नीचे आ गईं जहां उनके पति का मृत शरीर पड़ा था।
सत्यवान जीवंत हो गए और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। इस प्रकार से सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।
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