नई दिल्ली लॉकडाउन... कोरोना फैलने से पहले देश के ज्यादातर लोगों ने शायद ही इस शब्द के बारे में भी कभी सुना हो। लेकिन दो साल के भीतर अंग्रेजी का यह शब्द अब हर शख्स की जुबान पर आता रहता है। पहली, दूसरी के बाद अब कोरोना की तीसरी लहर आ गई है। कोरोना केसेज बढ़ने लगे हैं, मौतें हो रही हैं तो ऐसे में दिल्ली, यूपी समेत कई राज्यों में चर्चा हो रही है कि क्या लॉकडाउन लगाया जाना चाहिए। दरअसल, नाइट कर्फ्यू का असर कम हो रहा है। दिल्ली में नाइट कर्फ्यू के बाद भी जब संक्रमण की रफ्तार नहीं घटी तो वीकेंड कर्फ्यू का फैसला किया गया। तमिलनाडु सरकार ने तो रविवार को एक दिन के लिए संपूर्ण लॉकडाउन लगा दिया। दिल्ली में भी काफी चर्चा हो रही है क्योंकि केस अब भी नहीं घटे हैं। एक दिन पहले सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी लॉकडाउन का जिक्र करते हुए कहा कि कई लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि लॉकडाउन लगेगा? हम लॉकडाउन नहीं लगाना चाहते। लॉकडाउन नहीं लगेगा अगर आप मास्क पहनोगे। जरूरत न पड़े तो घर से बाहर न ही निकलो अभी थोड़े दिन... कोई जरूरी नहीं है। डीडीएमए की बैठक में पाबंदियां बढ़ाने पर फैसला हो सकता है। लॉकडाउन लगना चाहिए या नहीं लगना चाहिए? इस सवाल पर आईआईटी कानपुर के मैथमेटिक्स और कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल साफ कहते हैं कि इसका असर तो पड़ता है लेकिन मौजूदा हालात को समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर का पीक मुंबई और दिल्ली में जनवरी के मध्य में आ सकता है। देशभर में अगले महीने की शुरुआत तक पीक आ सकता है। मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि पहली लहर के समय सख्त लॉकडाउन ने संक्रमण की रफ्तार रोक दी थी। दूसरी लहर के दौरान अलग-अलग राज्यों ने अलग-अलग रणनीतियां अपनाईं। जिन राज्यों ने हल्का या मीडियम लॉकडाउन लगाया, वे संक्रमण को फैलने से रोकने में कामयाब रहे। इस तरह लॉकडाउन हेल्प तो करता है। उन्होंने यह भी कहा कि सख्त लॉकडाउन हेल्प तो करता है लेकिन बड़ी संख्या में लोगों की आजीविका पर बुरा असर पड़ता है। हम हमेशा कोविड के कारण मौतों की बात तो करते हैं लेकिन हमें उन मौतों के बारे में भी बात करनी चाहिए जो आजीविका छिनने के कारण होती हैं। उन्होंने कहा कि शहरों के लिए, जहां हम जनवरी के मध्य में पीक की उम्मीद कर रहे हैं, वहां लॉकडाउन की कोई जरूरत नहीं है। हां, राज्यों में केस बढ़ रहे हैं। इधर तमिलनाडु ने लॉकडाउन लगाया, जो थोड़ा समय से पहले उठाया गया कदम लगता है क्योंकि इस समय अस्पतालों में भर्ती करने की जरूरत काफी कम हो रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि लॉकडाउन रणनीति कुछ इस तरह होनी चाहिए कि अगर हमारे अस्पतालों या मेडिकल सिस्टम पर बोझ नहीं बढ़ रहा तो इससे बचें। हमें पूरी आबादी को देखना है।
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