नई दिल्ली देश की 'सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी' होने का दम भरने वाली कांग्रेस अक्सर सिद्धांतों की बात करती है। 'सांप्रदायिक' भाजपा से लड़ाई के लिए मिलती-जुलती विचारधारा वाली 'सेक्युलर' ताकतों से हाथ मिलाने की बातें होती हैं। नेहरू-गांधी के आदर्शों का हवाला दिया है जाता है। उनके सपनों के भारत को बनाने का वादा होता है। फिर जब चुनाव करीब आते हैं तो यही सिद्धांत किसी कोने में चला जाता है। पार्टी कुछ ऐसे दलों से हाथ मिला लेती है जिनपर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के आरोप हैं। नतीजा पार्टी में एक राय नहीं बन पाती। अंतर्विरोध उभर आते हैं। कभी बातें खुलकर सामने आ जाती हैं, कभी आंतरिक बैठकों में गुस्सा फूटता है। असम में AIUDF के साथ मिला लिया है हाथजनवरी के दूसरे हफ्ते में, कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया। 2011 की जनगणना के हिसाब से असम में 35 फीसदी आबादी मुस्लिम है, शायद इसी को ध्यान में रखकर कांग्रेस ने यह फैसला किया होगा। मगर दोनों दलों में सीट समझौते को लेकर खींचतान जारी है। पार्टी ने वहां लेफ्ट दलों और आंचलिक गण मोर्चा को भी साथ लिया है। असम कांग्रेस के प्रमुख रिपुन बोरा कहते हैं अजमल की पार्टी 'कम्युनल' नहीं है और उसे 'अछूत' नहीं समझा जाना चाहिए। बोरा का तर्क ये है कि बीजेपी ने पीडीपी से (जम्मू कश्मीर में) गठबंधन किया था जो भारतीय ध्वज को स्वीकार नहीं करती। बोरा ने कहा, "अगर आप अपने धर्म का सम्मान करते हैं तो आप कम्युनल नहीं हैं। बीजेपी कम्युनल है।" बंगाल में ISF के साथ खड़ी है कांग्रेसपश्चिम बंगाल में कांग्रेस-लेफ्ट फ्रंट ने नए-नवेले इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के साथ गठबंधन किया है। अब्बास सिद्दीकी पिछले साल से ही राजनीति में शामिल होने की बाट जोह रहे थे। शुरुआत में उनकी कोशिश असदुद्दीन ओवैसी के साथ जाने की थी मगर अब कांग्रेस के साथ हो लिए हैं। अब्बास नागरिकता संशोधन अधिनियम के मुखर विरोधी रहे हैं और काफी तीखे भाषणों के लिए जाने जाते हैं। उनका एक वीडियो खूब वायरल हुआ था जिसमें वह '50 करोड़ भारतीयों को वायरस से मारने' की दुआ कर रहे थे। बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि 'मतलब गलत निकाला गया।' वह बंगाल में मुस्लिमों के 'बहुसंख्यक' होने की बात करते हैं। केरल में मुस्लिम लीग का दामन थामादक्षिणी राज्य केरल में कांग्रेस पार्टी और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) साथ-साथ हैं। यहां कांग्रेस कमजोर होती गई है, अगर IUML नहीं होती तो शायद UDF सत्ता में नहीं आ पाती। कांग्रेस पर यह भी आरोप लगे कि उसने IUML के आगे सरेंडर कर दिया है। निकाय चुनाव में UDF की करारी हार के बाद सीएम पिनराई विजयन ने कहा था कि मुस्लिम लीग ही फ्रंट के फैसले कर रही है और कांग्रेस कुछ नहीं कर पा रही। फिर महाराष्ट्र में आकर पार्टी का शिवसेना से मिल जाना...केरल, बंगाल, असम जैसे राज्यों में 'कम्युनल' बीजेपी से लड़ने के नाम पर एक धर्म के पक्ष में आवाज उठाने वाले दलों से गठबंधन करना और फिर महाराष्ट्र में सत्ता पाने के लिए शिवसेना से हाथ मिला लेना। कांग्रेस के ऐसे कदमों के बाद ही तो उसकी धर्मनिरपेक्षता पर सवाल खड़े होते हैं। शिवसेना की पहचान एक 'कट्टर हिंदूवादी' पार्टी की रही है और आज भी कई मुद्दों पर कांग्रेस और उसकी राहें अलग हैं। पार्टी के भीतर से उठने लगी हैं आवाजेंअगर कांग्रेस धर्मनिपरेक्षता की बात करती है तो देशव्यापी स्तर पर एकरूपता नजर आनी चाहिए। जरूरत के हिसाब से अलग-अलग विचारधारा वाले दलों से हाथ मिला लेना और फिर खुद को 'सेक्युलर' बताते रहना उसके अपने नेताओं को रास नहीं आ रहा। राज्यसभा में पार्टी के उपनेता आनंद शर्मा (G23 के सदस्य) ने हाल ही में कहा कि "सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने में कांग्रेस सिलेक्टिव नहीं हो सकती। उसके हर तरह से ऐसा करना होगा, धर्म या रंग को देखे बिना।" शर्मा बंगाल में ISF के साथ कांग्रेस के गठबंधन को लेकर यह बात बोल रहे थे।
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