म्यांमार: तख्तापलट की अटकलें तेज हुईं तो पलटी सेना, निभाएगी 'संविधान की रक्षा' का वादा?

नेपीडॉ की साजिश रचे जाने की खबरों के बीच देश की सेना ने दावा किया है कि वह संविधान की रक्षा और पालन करेगी और कानून के मुताबिक ही काम करेगी। इस बयान के साथ उन अटकलों को विराम देने की कोशिश की गई है जिनके मुताबिक सेना सत्ता अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रही थी। म्यांमार में 1962 में तख्तापलट किया गया था जिसके बाद 49 साल तक सेना का शासन रहा। 'गलत तरीके से पेश किया बयान' दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ऐंटोनियो गुतारेस और म्यांमार में पश्चिमी राजदूतों ने इसे लेकर आशंका जाहिर की थी। इसके बाद देश की सेना तत्पदौ (Tatmadaw) ने कहा है कि उसके कमांडर इन चीफ सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है। सेना ने कहा है, 'तत्पदौ 2008 के संविधान की रक्षा कर रही है और कानून के मुताबिक ही काम करेगी। कुछ संगठन और मीडिया जो चाहते हैं, उसे मान लिया है और लिखा है कि तत्पदौ संविधान को खत्म कर देगी।' 'लोगों की इच्छाओं को हो सम्मान' सेना की इस बयान को आंग सान सू ची की सत्ताधारी नैशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी (NLD) ने 'उपयुक्त सफाई' बताया है। NLD प्रवक्ता म्यो न्युंट ने कहा है, 'पार्टी चाहती थी कि सेना ऐसा संगठन हो जो चुनाव को लेकर लोगों की इच्छाओं को स्वीकार करे।' नवंबर में हुए चुनाव में पार्टी ने भारी जीत दर्ज की थी। म्यांमार का संविधान सेना को संसद में 25% सीटें और तीन मंत्रालय का अधिकार देता है। क्यों पीछे हटी सेना? वहीं, विश्लेषक भी मान रहे हैं कि सेना ने तख्तापलट का अपना इरादा बदल दिया है। म्यांमार के विश्लेषक रिचर्ड हॉर्सी ने कहा है कि सेना के तख्तापलट की चेतावनी से पीछे हटने का क्या मतलब है और देश की स्थिरता पर इसका क्या असर होगा, यह तब पता चलेगा जब और ज्यादा जानकारी सामने आएगी, जो अभी तक छिपी हुई है। संविधान खत्म करने की चेतावनी संसद के नए सत्र से पहले सेना ने चेतावनी दी थी कि चुनाव में वोट के फर्जीवाड़े की शिकायत पर अगर ऐक्शन नहीं लिया गया तो सेना 'ऐक्शन लेगी।' दरअसल, इस हफ्ते राजनीतिक तनाव बढ़ गया था जब सेना के प्रवक्ता ने तख्तापलट की संभावनाओं को खारिज करने से इनकार कर दिया था। वहीं, कमांडर इन चीफ ने यहां तक कह दिया था कि अगर संविधान का पालन नहीं किया गया तो उसे वापस ले लिया जाएगा। उन्होंने पहले ऐसा किए जाने की घटनाओं का जिक्र भी किया था। वहीं, सेना ने सफाई दी है कि कमांडर इन चीफ संविधान की अहमियत समझाना चाहते थे। देशभर में हुए प्रदर्शन विवाद के बीच सेना के समर्थन में देश के कई बड़े शहरों में प्रदर्शन भी हुए थे। शनिवार को देश की आर्थिक राजधानी यंगून में 200 लोगों ने बैनरों के साथ सेना के समर्थन में मार्च भी निकाला। लोग देश में विदेशी दखल का विरोध भी कर रहे हैं। वहीं, म्यांमार के निर्वाचन आयोग ने गुरुवार को सेना के आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि वोटों को फर्जी करार देने लायक गलतियां नहीं पाई गई हैं।


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