अपुन के इंदौर में.....होलियाला मुड़.... हुर्रियारों के संग, रंगों का खेला.....बुरा ना मानों होली है...

इंदौर, संदीप पारे. यो साल होली के लिए खास है। कोरोना के बाद की पेली होली और चुनावी होली जो है। पाछे साल तो कोरोना से डरी-डरी ना मैदान पकड्यो थो। इना साल तो जोर से पकडनो पडेगो, क्योंकि अपुन के इंदौर में नया दौर जो आने वाला है। नेताजी ही नहीं लोग भी चुनावी फाग के मूड में नजर आ रिए है। यई सब देख के तो अपुन के भिया लोग भी थाल भर गुलाल ले कर अपने रंग की चटख देखने निकल पडे हैं। पूरा शहर इस समय होलीयाला मूड में है, हुर्रियारों के साथ भिया लोगों की टोली पिचकारी में रंगों की गुहार भर के निकली है। रंगो के मैदान में होली का खेला भी खूब होवेगा।
चुनावी पिचकारी से सियासत के रंग भी खूब बरसेंगे। अपुन के भियाओं पर तो चुनावी रंग चढ़ चुका है, अब तो लोगों पे चुनावी रंग चढ़ाना है। फागुन की मस्ती और बसंत के उल्लास की गर्मी से अच्छा मौका कोई नी हो सकता है। बस फिर क्या? इंदोरी भिया के जनता पर प्यार लुटाने के इस मजमे के साथ मन का चितचोर भी निकल पड़ा इस रंग बिरंगी दुनिया को देखने।
सबसे पेले पोंचे बड़ा गणपति के दरबार में, चौराए पे संजू भईया, गोलू दादा, दीपू काका, टीनू भैया, टोपी वाले नेताजी सब फागुन के फाग में मगन नजर आए। एरोड्रम रोड से चंदन नगर, बाणगंगा तक फाग का रंग उड़ रहा था। इस मस्ती के बीच यहां से तो एक ही धुन उठ रही थी......पग घुंघरू बांध मीरा नाची....और हम नाचे बिन घुंघरू के।
ससस् सारेगामा पधनिसा गुनगुनाते गुनगुनाते चितचोर पाटनीपुरा चौराहे पर पहुंच गया। यहां से मालवा मिल, परदेशीपुरा से विजय नगर निरंजनपुर तक अलग ही मजमा लगा था। दयालु, चिंटू भैया....के तपेलों में से पिचकारी में रंग भर भर पठ्ठे झूम रहे थे। फिजा में एक ही धुन पर थिरकते लोग रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे। किने मारी पिचकारी ....से किसी का कोइ सरोकार नहीं था। सभी रंगों की मस्ती में मस्त मजा कर करते नजर आए।
मन का मयूरा चितचोर का मन यहीं नहीं भरा, भरता भी कैसे, शहर में होली की हुडदंग शबाब पर जो थी। राजबाड़ा का अंदाज तो निराला था। ढोल-ताशों के बीच नंदलालपुरा पंढरीनाथ और भगवान इंद्रेश्वर के आंगन में में ब्रज के बांकुरों ने रंगो से मैदान रच दिया। भैया, पिंटू, संटू, मामा, काका सब रंगों के संग तल्लीन थे। क्योंकि यहीं तो लोगों को खेला का इंतजार है।
इस बात का संकेत यहां डीजे पर बज रहे गानों की मस्ती भी दे रही थी.....खईके पान बनारस वाला....खुल जाए बंद अकल का ताला... फिर तो ऐसा करें कमाल छोरा....कान्ह-सरस्वती किनारे वाले...... इस मस्तीले गाने तो मन के चितचोर की उमंगों को उत्तेजित कर दिया।
फिर क्या था, उत्तेजित चितचोर पहुंच गए जय..जय.. सियाराम के जय जय कारों के बीच। यहां रंगों से ज्यादा खूश्बू बिखरी थी। सराफा में हरी-हरी की सुगंध से ही मन मस्ताने लगा। नरसिंह बाजार...इतवारिया....मालगंज.....महू नाके से रंजीत बाबा के चौक तक अलग ही रंग बिखरा हुआ था। सभी भैया, भाभी, दीदी, लाडली बहना, काका, जगत भुआ सभी अपनी-अपनी किस्मत के रंगों को पिचकारी में भर-भर कर बिखेरते नजर आए। हुर्रियारे रंग पंचमी की तैयारी में लगे थे। होली के सबसे मस्तीले गीत होली के दिन फूल खिल जाते है......रंगों में रंग, दिलो से दिल मिल जाते है की धुन सुनाई दे रही थी।
इतना सब होने के बाद भी चुनावी गुलाल का रंग पूरे शहर में बिखर चुका है। नेताओं पर चुनावी इश्क का रश्क चरम पर नजर आया। पलासिया, बंगाली चौराहा, विजय नगर से निपानिया....बायपास तक जहां भी पंख फैलाए...माहोल पल...पल रंग बदलता रहा..... बाबा, दादा, भैया, दरबार सबके इंतजार के रंगों की रंगत नजर आई। इतना ही नहीं ताई और साईं का भी मजमा लगा मिला। विविध रंगों के बीच भाजपा हो या कांग्रेस दोनों की जोर आजमाइश यहीं पर होगी। यहां से गुजरते-गुजरते तिलक नगर की चौपाल पर अरे जा रे हट नटखट...सा रा रा रा आया होली का त्यौहार ..खूबसूरत गीत मजमा लूट रहा था।

बायपास-रिंग रोड के बीच बड़ा इलाका घूमते-घूमते चितचोर भटक गया और नवलखा बाग में पहुंच गया। यहां से कुछ ही दूरी पर िस्थत भंवर कुवा पर रंगों का भंवर कुछ अजब सा था। केसरबाग से केसर के रंगों की खूश्बू , मधु की मिठास, दो जीतू की जंग के बीच जयपाल की जुगाड़ ने होली को दिलचस्प बना दिया। बना दिया है। सभी अपने अपने रंगों की पिचकारिया छोड़ रहे हैं। क्योंकि यहां पर रंगों की तरह मतदाता भी विविधता लिए है।
इस विविधता को देखते-देखते चितचोर राउ गोल चौराहे पर उलझ गया, गोल-गोल घूमते हुए इंदौर के आसपास गांव की फिजा में घुले रंग के आनंद में मगन हो गया। मऊ में उषा की किरण, दरबार की दुनियादारी, देपालपुर में पटेलों के रुतबे का रंग तो सांवेर में पेलवानों के पेलवानी रंगों की पिचकारियां चलती नजर आई। चितचोर का मन चौपालों पर अष्ट-चंग-पे खेल रहे लोगों में रम गया।
......क्योंकि सभी रंगभरी गुलेल पर गुब्बारे चढ़ा कर आसमान में रंग बिखेर रहे है। वोटर भी खूब इन रंगों का आनंद ले रहे हैं। चुनावी घोषणाओं के रंगों की डूबकी के बीच कौन सा रंग भाएगा बस यही तो समय के रंगों का खेला है.......?



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