इस बार होलिका दहन 2023 का समय केवल ढाई घंटे, दहन के समय भूलकर भी न करें ये गलतियां

Holika Dahan 2023: पंचांग के मुताबिक इस बार होली का पर्व 7 और 8 मार्च को मनाया जाएगा। होली को हिंदुओं का प्रमुख त्योहार माना गया है। माना जाता है कि इस दिन भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था, तभी से इस त्योहार को मनाने की परम्परा चली आ रही है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को रंगों से होली खेली जाती है। पत्रिका.कॉम के इस लेख में ज्योतिषाचार्य पं. जगदीश शर्मा से जानें होलिका दहन का मुहूर्त, साथ ही यह भी कि होलिका दहन के दौरान भूलकर भी ये काम नहीं करना चाहिएं...

 

होलिका दहन 2023 मुहूर्त
होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा पर किया जाता है। इस साल फाल्गुन पूर्णिमा तिथि मंगलवार 6 मार्च को शाम 4 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी और यह बुधवार 7 मार्च को शाम 6 बजकर 9 मिनट पर संपन्न होगी। ऐसे में होलिका दहन 07 मार्च दिन मंगलवार को ही किया जाएगा।

 

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होलिका दहन का मुहूर्त
होलिका दहन इस बार 7 मार्च बुधवार को किया जाएगा। इस दिन होलिका दहन का मुहूर्त शाम 6 बजकर 24 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 51 मिनट तक ही रहेगा। यानी होलिका दहन के लिए आपको केवल 2 घंटे 27 मिनट का समय ही मिलेगा। इस अवधि में होलिका दहन करना ही सबसे उत्तम समय रहेगा।

 

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इनके बिना अधूरी रह जाती है होलिका दहन की पूजा
होलिका दहन की पूजा कुछ विशेष चीजों के बगैर बिल्कुल अधूरी मानी जाती है। इसलिए पूजा से पहले इन चीजों की व्यवस्था जरूर कर लेनी चाहिए। इसमें एक कटोरी पानी, गोबर के उपलों से बनी माला, रोली, अक्षत, अगरबत्ती, फल, फूल, मिठाई, कलावा, हल्दी का टुकड़ा, मूंग दाल, बताशा, गुलाल पाउडर, नारियल साबुत अनाज आदि होने चाहिए।

होलिका दहन में न करें ये गलती
होलिका दहन में झाड़ या सूखी लकडिय़ां जलाई जाती हैं। इसमें कभी भी आम, वट और पीपल की लकड़ी नहीं जलानी चाहिए। दरअसल फाल्गुन में इन तीनों पेड़ों की नई कोपलें निकलती हैं, इसलिए इन्हें जलाना वर्जित माना जाता है। होलिका दहन में गूलर या अरंड के पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल कर सकते हैं।

ऐसे करें होलिका दहन की पूजा
होलिका दहन से पहले होलिका माई की विधिवत पूजा का रिवाज है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहनें। दोपहर या शाम को सूर्यास्त से पहले होलिका दहन के स्थान पर पूजा की थाल लेकर जाएं। यहां पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। सबसे पहले होलिका को उपले से बनी माला अर्पित करें। इसके बाद रोली, अक्षत, फल, फूल, माला, हल्दी, मूंग, गुड़, गुलाल, रंग, सतनाजा, गेहूं की बालियां, गन्ना और चना आदि चढ़ाएं। इसके बाद होलिका पर एक कलावा बांधते हुए 5 या 7 बार परिक्रमा करें। अंत में जल चढ़ाएं और होलिका माई से अपनी सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। वहीं शाम को होलिका दहन के समय अग्नि में जौ या अक्षत जरूर डालें। लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं। इसकी अलाव में नई फसल को चढ़ाते हैं और भूनते हैं। भुने हुए अनाज को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।



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