गोवा में चिदंबरम बने कांग्रेस के 'सेनापति', क्या पर्रिकर की गैर मौजूदगी का उठा पाएंगे फायदा?

पणजी गोवा में कांग्रेस की नैया पार लगाने की जिम्‍मेदारी पार्टी के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम (Chidambaram) पर है। वे गोवा के पर्यवेक्षक भी हैं। चिदंबरम एक पुराने और विश्वासपात्र नेता हैं। लेकिन क्‍या वे क्या पर्रिकर की गैर मौजूदगी का फायदा उठा पाएंगे? क्‍या 75 साल की उम्र में वे इस कठिन टास्‍क को पूरा कर पाएंगे? गोवा की 40 विधानसभा सीटों पर 14फरवरी को मतदान होगा () और परिणाम 10 मार्च को घोषित होंगे। फिलहाल गोवा में बीजेपी की सरकार है। उसके पास अपने 25 विधायक हैं और एक निर्दलीय का समर्थन है। हाल ही में बीजेपी के दो विधायकों कार्लोज अल्मेडिया और एलिना सालदना ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। गोवा में 21 सीटें जीतने वाली पार्टी सरकार बनाएगी। लेकिन पिछली बार कोई भी पार्टी इस आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई थी। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 17 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने 13 सीटों पर जीत पाई थी। इसके अलावा एनसीपी 01, गोवा फारवर्ड पार्टी 03 और 03 निर्दलीय जीते थे। नतीजे आने के बाद काफी असंमजस की स्थिति रही, क्योंकि कोई पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। लेकिन अंत में सरकार भाजपा की ही बनी। चिदंबरम की सबसे बड़ी चुनौती क्‍या है? चिदंबरम के लिए सबसे बड़ी परेशानी है पार्टी के विधायकों की विश्‍वसनीयता। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे भाजपा से ज्‍यादा सीटें मिली थीं, बावजूद इसके वह सरकार नहीं बना पाई। 17 विधायक जीते थे, अब 2 बस दो विधायक ही बचे हैं। ऐसे में चिदंबरम विश्‍वास करेंगे तो करेंगे किस पर? वर्ष 2017 में कांग्रेस विधायक दल स्थानीय स्तर पर अपना नेता चुनने में असफल रहा था। जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी के तात्कालिक अध्यक्ष राहुल गांधी को सर्वसम्मति से दी गई थी। राहुल गांधी उस समय कहीं छुट्टी मना रहे थे। जब तक वे कोई फैसला लेते, तब तक खेल हो चुका था। बीजेपी ने सरकार बनाने की जिम्मेदारी मनोहर पर्रिकर को सौंपी। पर्रिकर की सभी दलों में पैठ थी। बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह भी गोवा गये और रातों रात पासा पलट गया। गोवा फॉरवर्ड पार्टी, महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी और निर्दलीयों ने बीजेपी को समर्थन दे दिया और 2012 की अपेक्षा खराब प्रदर्शन के बाद भी प्रदेश में बीजेपी की सरकार बन गई। क्‍या गोवा कांग्रेस को याद भी है?2017 में गोवा में भले ही कांग्रेस की सरकार नहीं बनी थी, लेकिन वह सबसे बड़ी पार्टी थी। बावजूद इसके कांग्रेस ने गोवा की सुध ही नहीं ली। 2019 में बीजेपी ने गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के दो-दो विधायक को अपने साथ ले लिया। फिर वह हुआ जिसकी उम्‍मीद किसी को नहीं थी। कांग्रेस के बाकी बचे 15 में से 10 विधायक एक साथ बीजेपी में शामिल हो गए। इसमें नेता प्रतिपक्ष चन्द्रकांतकावलेकर भी शामिल थे, जो भाजपा की सरकार में उपमुख्यमंत्री बने। दिल्‍ली में बैठे कांग्रेस के बड़े नेताओं ने 3-4 साल तो गोवा को भुला सा दिया। इसका नतीजा यह हुआ क‍ि प्रदेश में कांग्रेस बिखरती गई। क्‍या चमत्‍कार कर पाएंगे चिदंबरम?चिदंबरम को अगस्‍त में गोवा की ज‍िम्‍मेदारी सौंपी गई। अब उनसे उम्‍मीद की जा रही है क‍ि वे चमत्‍कार कर दिखाएंगे, वे इसकी तैयारी में लगे हैं। इसीलिए तो कांग्रेस ने यहां पर गोवा फारवर्ड पार्टी यानि (GFP) से गठबंधन किया है। 2017 के चुनाव में जीपीएफ ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। तीन सीटें जीतकर वो मनोहर पार्रिकर की सरकार में भी शामिल हुई लेकिन पार्रिकर के निधन के बाद नए मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने जब जीपीएफ विधायकों को मंत्री पद से हटा दिया तब ये पार्टी ना केवल सरकार से बाहर हो गई बल्कि इसने बीजेपी से अपना गठबंधन खत्म करने भी घोषणा कर दी। अब जीएफपी और कांग्रेस साथ हैं और उन्हें उम्मीद है कि दोनों को एक दूसरे के साथ आने का फायदा मिलेगा। इन सबसे भी अहम चुनौती है कि कैसे कांग्रेस पार्टी गोवा के मतदाताओं को भरोसा देगी कि पार्टी के प्रत्याशी चुनाव जीतने के बाद पूर्व की तरह ही सत्ता या पैसों के लालच में किसी अन्य दल में शामिल नहीं हो जाएंगे। कुल मिलाकर कहा जाए तो चिदंबरम की राह इतनी आसान नहीं होने वाली है।


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