स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए ओपिनियन पोल पर रोक जरूरी, मुख्य चुनाव आयुक्त को लेटर लिख लगाई गुहार

नई दिल्ली चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद ओपिनियन पोल पर रोक के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त को लेटर लिखकर गुहार लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट की ओर से मुख्य चुनाव आयुक्त को ईमेल लिखकर कहा गया है कि फ्री और फेयर चुनाव सुनिश्चित कराने के लिए ओपिनियन पोल पर रोक लगाई जाए। लेटर में कहा गया है कि आजकल एग्जिट पोल की जगह ओपिनियन पोल ले चुका है और यह फ्री और फेयर मतदान के सिद्धांत के खिलाफ है ऐसे में इस पर कड़ाई से रोक लगाई जाए। ओपिनियन पोल के प्रसारण पर लगे रोकसुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ईलिन सारस्वत की ओर से देश के मुख्य चुनाव आयुक्त को की गई ईमेल लेटर में कहा गया है कि ओपिनियन पोल के प्रसारण पर चुनाव आचार संहिता लागू होने पर रोक लगाई जाए। लेटर में कहा गया है कि आजकल यह चलन में हो गया है कि राजनीतिक पार्टी की प्रायोजित ओपिनियन पोल शुरू किया गया है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद और चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद भी चैनलों पर ओपिनियन पोल दिखाया जा रहा है और इस कारण वोटर बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। संविधान के तहत है अधिकारसंविधान के तहत वोटरों को अधिकार है कि वह बिना प्रभावित हुए वोट करें और फ्री और फेयर चुनाव हो लेकिन वोटरों के अधिकारों पर अटैक हो रहा है। लेटर लिखा गया है कि वास्तव में देखा जाए तो ओपिनियन पोल एग्जिट पोल की जगह ले चुका है। मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखे लेटर में यह भी कहा गया है कि जो भी ओपिनियन पोल होता है उसके सर्वे का कोई साक्ष्य. नहीं होता है और न ही कोई जवाबदेही होती है। इसके लिए प्रायोजक और सर्वे के खर्च का कोई लेखा जोखा नहीं होता है। ओपिनियन पोल कराने वाली एजेंसी कर रही कमाईवोटर लिस्ट के इस्तेमाल से लेकर अन्य व्यक्तिगत जानकारी ली जाती है और कोई जवाबदेही नहीं है। यह सब कुछ चैनलों द्वारा नंबर वन बनने के दावे के लिए किया जा रहा है और बिना साक्ष्य वाले डाटा का इस्तेमाल करते हैं और यह सब टीआरपी में नंबर वन के दावेदारी के लिए हो रहा है और मुंबई पुलिस ने कुछ समय पहले टीआरपी घोटाला उजागर भी किया था जिसमें कुछ चैनल संलिप्त थे। साथ ही लेटर में कहा गया है कि ओपिनियन पोल सीधे तौर पर वोटरों के सोच को प्रभावित कर रहा है और उनके वोट से सरकार बनती है और बिगड़ती है लेकिन चैनल और एजेंसी की कोई जवाबदेही नहीं होती है। इस दौरान जब चैनल और ओपिनियन पोल करने वाली एजेंसी जब ओपिनियन पोल ऑन एयर करते हैं तो बड़े पैमाने पर रकम कमाते हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत के खिलाफसंविधान के अनुच्छेद-324 के तहत यह सब फ्री और फेयर चुनाव के सिद्धांत के खिलाफ है। ऐसे में चुनाव की घोषणा और आचार संहिता के लागू होने के बाद ओपिनियन पोल पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए। जब तक आखिरी दिन वोटिंग नहीं हो जाती तब तक ओपिनियन पोल पर रोक होनी चाहिए। साथ ही ओपिनियन पोल, एग्जिट पोल और चुनावी सर्वे को आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए साथ ही जवाबदेही तय करने के लिए पारदर्शिता सुनिश्चित कराई जाए। एडवोकेट सारस्वत ने एनबीटी को बताया कि इस मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त को उनकी आधिकारिक मेल आईडी पर हमने उक्त शिकायत मेल की है और अगर उस पर विचार नहीं किया गया तो हम इस मामले में न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।


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