धरती की अंदरूनी परत में हलचल से परेशान वैज्ञानिक, 2200 तक डूब जाएगी अमेरिकी संसद?

वॉशिंगटन ग्लोबल वॉर्मिंग के असर से धरती के ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है। इस जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम तो खराब होता ही है, समुद्र का तापमान भी बढ़ता है। हवा और पानी के अलावा इसका असर धरती के अंदर तक दिखने लगा है। एक स्टडी में बताया गया है कि धरती के क्रस्ट () पर ग्लोबल वॉर्मिंग का असर देखा जा रहा है। यहां पर अंदरूनी चट्टानें सतह पर मौजूद ऑक्सिजन और पानी से रिऐक्ट करती हैं। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में छपे पेपर में सोफी कोल्सन ने बताया है कि बर्फ के पिघलने से धरती के क्रस्ट पर हजारों किलोमीटर दूर तक असर दिखाई देने लगा है। धरती के अंदर हो रहा है असर ग्लेशियर्स की बर्फ के भार से पानी नीचे की ओर दबा रहता है, और इनके पिघलने से यह ऊपर आ जाता है। इसे कहते हैं। इसकी झलक ग्लेशियर से कुछ दूर स्कॉटलैंड और कनाडा जैसे इलाकों में दिखती है जहां समुद्रस्तर हर साल कम होता देखा गया है। आमतौर पर यह पास के इलाकों में देखा जाता है लेकिन नई स्टडी में पाया गया है कि यह बदलाव वैश्विक स्तर पर हो रहा है। तो डूब जाएगा वॉशिंगटन कोल्सन ने बताया है कि इसके असर से कई जगहों पर धरती की यह परत ऊपर से नीचे जाने की बजाय दायें से बायें जा रही है। डेलीएक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जब Laurentide Ice Sheet पिघलने लगी तो कनाडा और अलास्का में बर्फ का दबाव कम हो गया और दक्षिणी अमेरिका का पानी ऊपर की ओर नहीं बढ़ा। अब कनाडा की हडसन खाड़ी में हर साल पानी आधा इंच बढ़ता जा रहा है जबकि वॉशिंगटन डीसी के कैपिटल के साल 2200 तक पूरी तरह पानी में डूबने की आशंका जताई गई है। क्यों जरूरी है यह स्टडी? कोल्सन का कहना है कि अंटार्कटिका जैसे कुछ हिस्सों में क्रस्ट के Rebound होने स बर्फ के नीचे की चट्टान का स्लोप बदलने लगा है और इससे बर्फ पर यह असर पड़ा है। कोल्सन का कहना है कि नई खोज से क्लाइमेट एक्सपर्ट्स ग्लेशियर्स के पिघलने, बर्फ की कमी और वैश्विक तापमान में बढ़त और भविष्य में उसके असर पर अनैलेसिस कर सकेंगे। टेक्टॉनिक प्लेटों और भूकंप को मॉनिटर करने के लिए बर्फ के पिघलने से होने वाले इस असर को भी समझना जरूरी है।


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