Malaysia के Raub में ज्यादातर पेड़ सरकारी जमीन पर लगे थे और किसानों का कहना है कि वे अपने खेतों को कानूनी रूप से हासिल करने की कोशिश कई साल से कर रहे हैं, लेकिन उनके आवेदन लटके हुए हैं।
दक्षिणपूर्व एशिया में एक खास फल होता है- डूरियन। इसका स्वाद जितना शानदार होता है, गंध उतनी ही खराब। इसकी गंध इतनी खराब है कि थाईलैंड, जापान, सिंगापुर और हॉन्ग-कॉन्ग में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में इसे ले जाना ही बैन है। बावजूद इसके, इस फल की डिमांड इतनी ज्यादा है कि एक किलो फल की कीमत 2000 रुपये हो सकती है। इसलिए इन्हें ‘पेड़ पर लगा सोना’ तक कहते हैं। अब इसी सोने के पीछे मलेशिया के किसानों और सरकार से समर्थन पाने वाले कंसोर्टियम के बीच जंग छिड़ गई है।
चीन ने दिखाई दिलचस्पी
डूरियन की एक खास प्रजाति होती है मुसांग किंग। इसके एक पेड़ से किसान को साल भर में 1000 डॉलर यानी करीब 75 हजार रुपये की कमाई हो सकती है। मलेशिया के राउब शहर को इसका गढ़ कहा जाता है। हालांकि, इंसाइडर साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई में वन विभाग से 15000 पेड़ काट डाले। रिपोर्ट्स के मुताबिक यहां के डूरियन की मांग चीन में बढ़ गई है जो ज्यादातर फल थाईलैंड से लेता था लेकिन अब उसने मलेशिया से डील की है। इससे इनकी कीमत बढ़ गई है।
अब सरकार को आई याद
अब तक जो सरकार इनकी खेती में दखल नहीं देती थी, वह देने लगी है। दरअसल, ज्यादातर पेड़ सरकारी जमीन पर लगे थे और किसानों का कहना है कि वे अपने खेतों को कानूनी रूप से हासिल करने की कोशिश कई साल से कर रहे हैं, लेकिन उनके आवेदन लटके हुए हैं। सरकार ने भी कभी इसे लेकर सवाल नहीं किया लेकिन किसानों का कहना है कि निर्यात का फायदा देखकर अब उनके रोजगार पर लात मारी जा रही है। इस सबके बीच रॉयल पहान्ग डूरियन ग्रुप से विवाद खड़ा हो गया है। इसका सरकारी कृषि विभाग से समझौता है। इसमें देश के शाही परिवार से भी सदस्य शामिल हैं और खुद सुल्तान की बेटी इसकी अध्यक्ष हैं।
किसानों की मेहनत पर पानी
पिछले साल सरकार ने इसे 5500 एकड़ की जमीन दे दी जबकि यहां पहले से किसानों के एक हजार मूसांग किंग के पेड़ थे। संगठन ने किसानों से कहा कि उनकी जमीन लीज पर दी जा सकती है और इसके लिए एक बार में एक एकड़ के लिए 1400 डॉलर की फीस देनी होगी लेकिन बदले में किसानों को अपनी फसल संगठन को ही करीब 8.6 डॉलर प्रति किलो में बेचनी होगी। किसानों को यह मंजूर नहीं था क्योंकि वे अभी करीब 13 डॉलर प्रति किलो पर अपनी फसल बेच रहे हैं।
फायदा या गुलामी?
इस पर किसानों ने सवाल किया है कि आखिर सरकार ने जमीन संगठन को क्यों दी, उन किसानों को क्यों नहीं जो 30-40 साल से यहां काम कर रहे हैं और जिन्होंने अपनी मेहनत से इस खास फल को एक ब्रैंड बना दिया है। संगठन का कहना है कि वह किसानों को फायदा देना चाहता है और उनके अधिकार सुरक्षित करना चाहता है जबकि किसानों ने इसे गुलामी की साजिश करार दिया है।
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