चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 'वर्ष प्रतिपदा' कहलाती है। भारतीय धर्मशास्त्रो के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नए वर्ष का आरम्भ माना जाता है। ऐेसे में इस बार हिंदुओं का नव वर्ष यानि नवसंवत्सर 2078, 13 अप्रैल 2021 से शुरु होगा। वहीं जानकारों के अनुसार यह संवत 2078 'राक्षस' नाम से जाना जाएगा।
ब्रह्म पुराण में ऐसा प्रमाण मिलता है कि 'ब्रह्माजी ने इसी तिथि को (सूर्योदय के समय) सृष्टि की रचना की थी।' स्मृति कौसतुभकार के मतानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र के 'निष्कुंभ योग' में भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था।
वहीं भारत के प्रतापर, महान सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के संवत्सर का भी यहीं से आरंभ माना जाता है। इस तरह से न केवल पौराणिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस तिथि का बहुत महत्व है।
आपने भी देखा होगा कि संसार के हर देश में नए वर्ष का प्रारंभ दिवस बड़े हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। भिन्न भिन्न देशों के लोग नववर्ष को अपने अपने झंग से मनाते हैं।
यूरोप, अमेरिका सहित अधिकांश राष्ट्रों में 31 दिसंबर की मध्यरात्रि में रात के 12 बजते ही नववर्ष मनाया जाता है। इन देशों से प्रभावित होकर अब यह भारत में भी मनाया जाने लगा है। जबकि भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है।
जानकारों के अनुसार हम भारतीय रात 12 बजे की बजाय सूर्योदय से नवीन दिनक की शुरुआत मानते हैं। अत: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान की आराधना से हमारा नववर्ष शुरु होता है।
यहां एक दूसरी खास बात ये भी है कि हमारा भारतीय मास तो पूर्णमासी के दूसरे दिन यानि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरु होकर पूर्णि के दिन पूर्ण होता है और इस प्रकार अमावस्या माह के मध्य मे आती है।
लेकिन हमारा नववर्ष मास के प्रथम दिवस यानि कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से नहीं बल्कि आधा चैत्र बीत जाने के बाद चैत्र की अमावस्या के दूसरे दिन यानि चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरु होता है।
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इस प्रकार चैत्र मास का प्रथम पूर्वाद्र्ध यानि होली की पड़वा से चैत्र की अमावस्या तक के 15 दिन तो गत वर्ष के अंतिम 15 दिन होते हैं और चैत्र मास का उत्तराद्र्ध यानि अमावस्या की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक के 15 दिन नवीन वर्ष के अंतर्गत आते हैं।
व्रत फल व विधि...
यह व्रत चिर सौभाग्य प्राप्त करने की कामना से किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के करने से वैधव्य दोष नष्ट हो जाता है।
इस दिन प्रात: नित्यकर्मों से निवृत्त होकर नए वस्त्र धारण करने के बाद हाथ में गंध, पुष्प ,अक्षत और जल लेकर संकल्प करना चाहिए। स्वच्छ चौकी या बालुका वेदी पर शुद्ध श्वेत वस्त्र बिछाकर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत (चावल)का एक अष्टदल (आठ दलों वाला) कमल बनाएं। इसके बाद मंत्र से ब्रह्माजी का आवाह्न करें...
'ओम ब्रह्मणे नम:'
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इसके बाद धूप,दीप,पुष्प व नैवेद्य से पूजन करना चाहिए। इसी दिन नए वर्ष के पंचाग का वर्षफल सुनें और गायत्री मंत्र का जाप कर पूजन करें।
'ओम भूभुर्व:स्व: संवत्सराधिपतिमावाहयामि पूजयामि।'
आज से भगवती भवानी के नवरात्र भी शुरू हो जाते है साथ ही जगद्उत्पादक ब्रह्माजी की विशेष पूजा—आराधना का भी विशेष विधान है।
आज के दिन नए वस्त्र धारण करने, घर को सजाने, नीम के कोमल पत्ते खाने, ब्राह्मणों को भोजन कराने और प्याउ की स्थापना करने का भी विशेष विधान है।
इस दिन पवन परीक्षा से वर्ष के शुभशुभ फल का ज्ञान भी होता है। इसके लिए एक लंबे बांस (डण्डे) में नवीन वस्त्र से बनी लंबी पताका को किसी उंची वायु की रोक से रहित शिखर या वृक्ष की चोटी से बांधकर ध्वज का पूजन करना चाहिए।
आओ वायु कुरंगपति ले नव वर्ष संदेश।
प्रगट करो फल वर्ष का ले गति दिशा प्रवेश।।
इसके बाद ध्वज के उड़ने से दिशा का निश्चय करें कि वायु किस दिशा को जा रही है। वायु का फल इस प्रकार हैं...
1. पूर्व की ओर: धन, उन्नति
2. अग्निकोण : धन नाश
3. दक्षिण : पशुओं का नाश
4. नैर्ऋत्य कोण : धान्य हानि
5. पश्चिम : मेघवृद्धि
6. वायव्य: स्थिरता
7. उत्तर : विपुल धान्य
8. ईशान : धन आगमन
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