श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था इस पर्व का महत्व, इस व्रत से मिलता है वाजपेय यज्ञ का फल

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी कहते हैं। इसे परिवर्तिनी एकादशी व डोल ग्यारस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा की जाती है। इस बार यह एकादशी 29 अगस्त, शनिवार को है। नर्मदापुरम के भागवत कथाकार पं. हर्षित कृष्ण बाजपेयी का कहना है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की घाट पूजा की गई थी। ये पर्व अलग-अलग जगहों पर श्रीकृष्ण जन्म के बाद होने वाले मांगलिक कार्यक्रम जल पूजा, घाट पूजा और सूरज पूजा के रूप में मनाया जाता है।


परिवर्तिनी यानी जल झूलनी एकादशी व्रत की विधि और महत्व

  1. परिवर्तिनी एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि रात से ही शुरू करें और ब्रह्मचर्य के नियमों का ध्यान रखें।
  2. एकादशी के दिन सुबह नहाकर साफ कपड़े पहनने के बाद भगवान विष्णु की पूजा कर के व्रत का संकल्प लें। इस दिन उपवास या व्रत किया जाता है। अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। अगर संभव न हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं।
  3. इस दिन भगवान कृष्ण और वामन देव की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। अगर खुद पूजा नहीं कर पाएं तो किसी ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।
  4. भगवान को पंचामृत चढ़ाएं फिर खुद चरणामृत पिएं।
  5. इसके बाद भगवान को फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और अन्य पूजा की सामग्री चढ़ाएं।
  6. रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप ही सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी पर वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।
  7. धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो मनुष्य यत्न के साथ विधिपूर्वक परिवर्तिनी एकादशी व्रत करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
  8. विष्णु पुराण के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को बताया है। इस एकादशी पर व्रत और पूजा करने से ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों की पूजा का फल मिलता है।


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