जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा उत्सव के दौरान कई सारी परंपराएं निभाई जा रही हैं। इन्हीं परंपराओं में से हेरा पंचमी निभाई गई। परंपरा के अनुसार माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से भेंट करने आती हैं लेकिन द्वारपाल मंदिर का दरवाजा बंद कर देते हैं। इससे नाराज हो कर लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ के रथ का पहिया तोड़कर पुरी के हेरा गोहिरी साही में बने अपने मंदिर में वापस लौट जाती हैं।
जब जगन्नाथ जी को इस बारे में पता चलता है तो वो लक्ष्मी जी को मनाने के लिए कई तरह की बेशकीमती भेंट और मिठाई लेकर उनके मंदिर पहुंचते हैं। इस परंपरा में भगवान जगन्नाथ विशेष रूप से रसगुल्ले माता लक्ष्मी के लिए ले जाते हैं। आखिरकार बहुत कोशिश करने के बाद जगन्नाथ जी माता लक्ष्मी को मनाने में कामयाब हो जाते हैं। उस दिन को विजया दशमी के रूप में मनाते हैं, इसके बाद रथ यात्रा की वापसी को बोहतड़ी गोंचा के नाम से जश्न मनाते हैं। पूरे 9 दिन बाद भगवान जगन्नाथ अपने मंदिर के लिए लौट जाते हैं।
माता लक्ष्मी अपने मंदिर से पालकी पर विराजित होकर गुंडिचा मंदिर पहुंची। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ यहीं 9 दिन रहते हैं। 1 जुलाई को भगवान फिर से मुख्य मंदिर में पहुंचेंगे। माता लक्ष्मी की ओर से उनके मंदिर के पुजारियों ने बात की। जब जगन्नाथ भगवान के पुजारियों ने उन्हें द्वार से लौटाया तो माता लक्ष्मी की तरफ से उनके पुजारियों ने भगवान जगन्नाथ के रथ के एक पहिए को तोड़ दिया। अब भगवान जगन्नाथ हेरा गोहिरी साही मंदिर में जाकर माता लक्ष्मी को मनाएंगे। माता के मानने के बाद 1 जुलाई को रथयात्रा फिर से मुख्य मंदिर लौटेगी।
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