शनि देव का नाम सुनते ही प्रायः लोग डर जाते हैं। शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया या शनि की महादशा, अंतरदशा में शनि जनित कष्ट सभी को कमोबेश होते ही हैं। हालांकि ज्योतिष शास्त्रों में शनि ग्रह को न्याय का कारक बताया गया है। वे सभी लोगों को अपने वर्तमान व पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं। बुरे कर्म करनेवालों को जहां शनि देव दंडित करते हैं वहीं अच्छे कर्म करनेवालों को सुख भी देते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित अरूण कुमार बुचके के अनुसार यह बात हमेशा याद रखें कि शनिदेव जल्दी प्रसन्न होनेवाले देवता नहीं हैं, कर्मों का अच्छा या बुरा फल तो वे देंगे ही। शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया या शनि की महादशा, अंतरदशा में शनि का प्रभाव ज्यादा होता है इसलिए लोग अपने बुरे कर्माे के कारण इस अवधि में परेशान भी रहते हैं।
ऐसे लोगों को दशरथकृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं तथा परेशानियों से मुक्ति देते हैं।
यदि आप बुरे कर्म छोडकर दशरथकृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करें तो शनिदेव की प्रसन्नता से आपकी हर समस्या का समाधान हो सकता है।
दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से आपकों शनि देव से मिल रहे कष्टों से कुछ राहत जरूर मिलेगी। जो लोग संस्कृत में दशरथकृत शनि स्तोत्र को नहीं पढ सकते हैं हम उनके लिए स्तोत्र का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं। इसका पाठ करते वे शनिदेव से दुख-दर्द मिटाने की प्रार्थना करें-
दशरथकृत शनि स्तोत्र-
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नमः।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नमः ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ।।
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ।।
तपसा दग्ध.देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः ।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज.सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध.विद्याधरोरगाः।
त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः।।
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः ।।
हिंदी में भावार्थ
जिनके शरीर का वर्ण कृष्ण नील तथा भगवान् शंकर के समान है, उन शनि देव को नमस्कार है। जो जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप हैंए उन शनैश्चर को बार.बार नमस्कार है। जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस.हीन तथा जिनकी दाढ़ी.मूंछ और जटा बढ़ी हुई है उन शनिदेव को नमस्कार है। जिनके बड़े.बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट और भयानक आकार है, उन शनैश्चर देव को नमस्कार है।
जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे.चौड़े किन्तु सूखे शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार प्रणाम है। हे शने ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप घोर रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है। वलीमूख ! आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन ! भास्कर.पुत्र ! अभय देने वाले देवता ! आपको प्रणाम है। नीचे की ओर दृष्टि रखने वाले शनिदेव ! आपको नमस्कार है। संवर्तक ! आपको प्रणाम है। मन्दगति से चलने वाले शनैश्चर ! आपका प्रतीक तलवार के समान है, आपको पुनः.पुनः प्रणाम है। आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सदा सर्वदा नमस्कार है। ज्ञाननेत्र ! आपको प्रणाम है। काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव आपको नमस्कार है। आप सन्तुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते हैं। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग. ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं। देव मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ।
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