इंदौर।
शहर ने अंगदान में अपनी अलग ही पहचान बना ली है। कल 44वां ग्रीन कॉरिडोर बना। एक साथ दो ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए। शहरवासी भी अंगदान में प्रशासन का साथ दे रहे हैं। अंगदान से अब तक कई जिंदगियो को बचाया जा चुका है, लेकिन कल की जल्दबाजी भारी पड़ी और शैल्बी हॉस्पिटल से मजह तीन मिनट में सीएचएल पहुंची किडऩी ट्रासंप्लांट नहीं हो पाई। हालांकि इसके पीछे का वास्तविक कारण अब तक सामने नहीं आ पाया है। मेडिकल विभाग के अधिकारी इसे तकनीकी कारण बता रहे हैं। सोटो का सेटअप तैयार करने में भी अधिकारी रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
बता दें कि चार से पांच साल पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्टेट ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) की मंजूरी इंदौर में थी। हालांकि बाद में इसे लेकर भोपाल और इंदौर के बीच खींचतान तक चली। अब तक सोटो का सेटअप तैयार नहीं किया गया। इसमें ज्वॉइंट डायरेक्टर कंसल्टेंट, डेटा एंट्री ऑपरेटर और वालेंटियर सहित अन्य पोङ्क्षस्टग की जाना है, लेकिन मेडिकल विभाग के अफसरों की लापरवाही से अब तक नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं। अभी सोटो का सेटअप तैयार नहीं होने से एनजीओ पूरा काम संभाल रहा है।
कल दो जिंदगी बचीं
कल अंगदान के लिए सामने आए 52 वर्षीय मायाचंद्र बिरला का लीवर और दो किडनी ट्रांसप्लांट किए जाने थे। इसके लिए ग्रीन कॉरिडोर भी बनाए गए, लेकिन शैल्बी हॉस्पिटल और चोइथराम हॉस्पिटल में सफल ट्रांसप्लांट हो गया और दो जिंदगियों को नया जीवनदान मिला। सीएचएल में किडऩी ट्रांसप्लांट नहीं हो पाया।
तकनीकी इश्यू रहा
टेक्नीकल और क्लीनिकल इश्यू थे। सोटो में भी नियुक्तियां को लेकर प्रक्रिया चल रही है।
- डॉ. संजय दीक्षित
डीन,एमजीएम कॉलेज
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/j0l3EAV