नई दिल्ली एम्स के नेत्र विज्ञान विभाग, यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद और नैशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस ऐंड विजुअल इम्पेयरमेंट (NPCBVI) ने मिलकर हाल ही में देश के 21 जिलों में एक सर्वे किया था। सर्वे से पता चला कि डायबिटीज के 17 प्रतिशत मरीज रेटिनोपैथी यानी रेटिना से जुड़ी बीमारी से जूझ रहे हैं। इससे आंखों की रोशनी तक जा सकती है। सर्वे में एक चिंता वाली बात यह भी रही कि कई लोगों को पता ही नहीं था कि उन्हें डायबिटीज है। इनमें से 4 प्रतिशत लोगों में समस्या इतनी गंभीर थी कि आंखों की रोशनी जाने का खतरा है। जबकि 12 प्रतिशत मरीजों की बीमारी उतनी गंभीर नहीं थी। स्टडी में हिस्सा लेने वाले रिसर्चरों का कहना है कि डायबेटिक रेटिनोपैथी को कम करने के लिए जरूरी है कि लोगों में डायबिटीज की पहचान शुरुआत में ही कर ली जाए और उनमें आंखों से जुड़ी समस्याओं को लेकर नियमित जांच की जाए। सर्वे के नतीजे इंडियन जर्नल ऑफ ऑफ्थेमॉलजी (IJO) के ताजा अंक में प्रकाशित हुए हैं। इस सर्वे का कुल सैंपल साइज 63,000 था जिसमें 50 साल और इससे ज्यादा उम्र के लोग शामिल किए गए। आईजेओ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, जितने लोगों पर सर्वे किया गया उनमें से करीब 12 प्रतिशत लोग डायबिटीज के मरीज थे। इनमें से करीब 1 तिहाई ऐसे थे जिन्हें सर्वे के टाइम ही पता चला कि उन्हें डायबिटीज है। सर्वे से पता चला कि डायबिटीज के करीब 17 प्रतिशत मरीजों में डायबिटीज रेटिनोपैथी (DR) की समस्या थी। करीब 4 प्रतिशत को गंभीर रेटिनोपैथी की समस्या थी जिसमें आंखों की रोशनी जाने का खतरा था। करीब 12 प्रतिशत में माइल्ड रेटिनोपैथी थी। डायबिटीज की वजह से शरीर की नसों को नुकसान पहुंचता है। अमेरिका के नेशनल आई इंस्टिट्यूट के मुताबिक आंखों को तब नुकसान पहुंचना शुरू होता है जब शुगर रेटिना की महीन ब्लड वेसेल्स को ब्लॉक कर देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि डायबिटीज से पीड़ित मरीजों को साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की अच्छी तरह जांच करानी चाहिए।
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