मोदी सरकार का आधा कार्यकाल पूरा फिर भी लोकसभा में खाली है यह कुर्सी! समझें मामला

नई दिल्ली मौजूदा लोकसभा के गठन को करीब ढाई साल होने को हैं यानी 17वीं लोकसभा का कार्यकाल लगभग आधा खत्म होने को है लेकिन अब तक डेप्युटी स्पीकर का पद खाली है। संसदीय इतिहास में इतने लंबे वक्त तक यह संवैधानिक पद कभी भी खाली नहीं रहा। विपक्षी दलों ने कई बार इस मुद्दे को उठाया, स्पीकर को खत लिखा कि डेप्युटी स्पीकर का चुनाव कराया जाए लेकिन अभी तक हाल जस का तस है। अब तो मामला अदालत में भी जा चुका है। पवन रेली नाम के याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट में पिटिशन दाखिल कर इसे संविधान के अनुच्छेद 93 का उल्लंघन बताया है। क्या है आर्टिकल 93 और डेप्युटी स्पीकर के अधिकार? डेप्युटी स्पीकर एक संवैधानिक पद है। आर्टिकल 93 में कहा गया है कि लोकसभा 'जितना जल्दी संभव हो सके' सदन के 2 सदस्यों को स्पीकर और डेप्युटी स्पीकर चुनेगी। याचिकाकर्ता ने इसी आधार पर डेप्युटी स्पीकर का चुनाव अब तक नहीं कराए जाने को असंवैधानिक बताया है। डेप्युटी स्पीकर जब सदन का संचालन करते हैं तब उनके पास स्पीकर के सारे अधिकार होते हैं। कुछ संसदीय समितियों के वह पदेन अध्यक्ष भी होते हैं। स्पीकर की अनुपस्थिति या इस्तीफे व किसी अन्य वजह से अगर स्पीकर का पद खाली होता है तो नए के चुनाव तक डेप्युटी स्पीकर के पास स्पीकर की सारी शक्तियां होती हैं। स्पीकर की अनुपस्थिति में सदन का संचालन करते वक्त डेप्युटी स्पीकर की तरफ से लिए फैसले को स्पीकर भी नहीं पलट सकता। महाराष्ट्र विधानसभा में 8 महीने से स्पीकर ही नहीं यह हाल सिर्फ लोकसभा के डेप्युटी स्पीकर का ही नहीं है, महाराष्ट्र में तो नाना पटोले के इस्तीफे के बाद से ही विधानसभा स्पीकर का पद खाली है। पिछले 8 महीने से कार्यवाहक स्पीकर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। डेप्युटी स्पीकर नहीं तो काम कैसे हो रहा? अगर स्पीकर या डेप्युटी स्पीकर दोनों ही मौजूद नहीं है तो सदन की कार्यवाही का संचालन 'पैनल ऑफ चेयरपर्सन्स' का सदस्य करता है। इस पैनल के सदस्यों का चयन स्पीकर करते हैं जिसमें सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष के सदस्य भी शामिल होते हैं। फिलहाल, पैनल ऑफ चेयरपर्सन्स में लोकसभा के 9 सदस्य हैं। इनमें बीजेपी की रमा देवी, किरीट पी. सोलंकी, राजेंद्र अग्रवाल, कांग्रेस के के. सुरेश, डीएमके के ए राज, वाईएसआर कांग्रेस के पीवी एम रेड्डी, बीजेडी के भतृहरी महताब, रिवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एनके प्रेमचंद्रन और टीएमसी की काकोली घोष दस्तीदार शामिल हैं। अभी तो कोई डेप्युटी स्पीकर ही नहीं है, इसलिए स्पीकर की अनुपस्थिति में पैनल ऑफ चेयरपर्सन्स का सदस्य सदन का संचालन करता है। हालांकि, इनके पास न तो किसी तरह की प्रशासनिक शक्तियां होती हैं और न ही ये किसी कमिटी के पदेन सदस्य होते हैं। शुरुआत में डेप्युटी स्पीकर चुनाव के लिए सरकार ने की थी कोशिश आम तौर पर स्पीकर और डेप्युटी स्पीकर का चुनाव साथ-साथ होता है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद सरकार ने डेप्युटी स्पीकर पोस्ट को भरने के लिए कुछ कोशिशें की थीं। उसने वाईएसआर कांग्रेस को यह पद देने की पेशकश की थी लेकिन उसने ठुकरा दिया। डेप्युटी स्पीकर पोस्ट विपक्ष के पास रहने की परंपरा वैसे संविधान में यह कहीं नहीं लिखा गया है कि डेप्युटी स्पीकर का पद विपक्ष को ही मिलेगा। लेकिन लंबे वक्त से यही संसदीय परंपरा रही है। देश के आजाद होने के बाद से अबतक 15 लोग डेप्युटी स्पीकर रह चुके हैं। शुरुआती 4 लोकसभा के दौरान स्पीकर के साथ-साथ डेप्युटी स्पीकर का पद भी सत्ताधारी कांग्रेस के पास था। लेकिन 1956 में कांग्रेस ने शिरोमणि अकाली दल के हुकुम देव को डेप्युटी स्पीकर चुना। वह किसी विपक्षी पार्टी से पहले डेप्युटी स्पीकर थे। बाद में डेप्युटी स्पीकर का पद परंपरागत तौर पर विपक्ष के खाते में रहा। इस परंपरा का सबने पालन किया भले ही कांग्रेस की सरकार रही हो या गैरकांग्रेसी सरकार। स्पीकर को करना होता है डेप्युटी स्पीकर का चुनाव लोकसभा की नियमावली देखें तो रूल नंबर 8 डेप्युटी स्पीकर के चुनाव की जिम्मेदारी स्पीकर को देता है। इस नियम के मुताबिक स्पीकर को चुनाव की तारीख तय करनी होती है। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने अब तक डेप्युटी स्पीकर के चुनाव की तारीख तय नहीं की है। मामला अब अदालत में है। लिहाजा देखना यह है कि स्पीकर अदालती फैसले से पहले ही चुनाव कराते हैं या फिर अदालत के आदेश पर।


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