नेपाल को सता रहा चीनी कर्ज में फंसने का डर, शी जिनपिंग के ड्रीम प्रॉजेक्‍ट का कड़ा विरोध

काठमांडू भारत के पड़ोसी देश नेपाल में चीन की बदनाम बेल्‍ट एंड रोड परियोजना और ड्रैगन के अन्‍य निवेश का जोरदार विरोध शुरू हो गया है। नेपाली जनता को अब अहसास हो गया है कि चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रॉजेक्‍ट बेल्‍ट एंड रोड इस हिमालयी देश के लिए हितकारी नहीं है। यही नहीं कई अफ्रीकी देशों में बीआरआई की योजनाओं को रद किए जाने के बाद अब नेपाली नेताओं की ओर से मांग उठ रही है कि हमें भी चीनी प्रॉजेक्‍ट पर फिर से विचार करने की जरूरत है। नेपाली नेताओं को इस बात का डर सता रहा है कि उनका देश भी कहीं बीआरआई के नाम पर चीनी कर्ज के तले न दब जाए। नेपाल के पूर्व डेप्‍युटी पीएम राजेंद्र महतो ने द संडे गार्डियन से बातचीत में कहा कि देश में चीन का बीआरआई प्रॉजेक्‍ट अभी अपने शुरुआती चरण में है। इस परियोजना के साथ आगे बढ़ने से पहले हमें काफी ज्‍यादा सोचना होगा। उन्‍होंने कहा क‍ि इस संबंध में देश में व्‍यापक विचार विमर्श की जरूरत है। हमें यह देखना होगा कि क्‍या बीआरआई नेपाल के लिए फायदेमंद है? यह नेपाली जनता के लिए कैसे मददगार साबित होगा? इसका राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय रिश्‍तों पर क्‍या असर पड़गा? नेपाल में चीनी निवेश के फेल होने की सूची काफी लंबी महतो ने कहा कि चीन की बीआरआई परियोजना का भारत पर क्‍या असर होगा, जो हमारा पड़ोसी देश है और जिसके साथ हमारी 1800 किमी सीमा लगती है। बीआरआई पर फैसला करने से पहले हमें इस बात पर जोर देना होगा कि नेपाली जमीन को किसी के खिलाफ न इस्‍तेमाल किया जाए। उन्‍होंने कहा कि यह चीनी परियोजना अगर नेपाली जनता के लिए फायदेमंद नहीं है तो हमें इसके साथ आगे नहीं बढ़ना चाहिए और अगर है तो बढ़ना चाहिए। नेपाल के सबसे बड़े हाइड्रोपॉवर प्रॉजेक्‍ट बूढ़ी गंडकी का अनुभव अच्‍छा नहीं रहा है और इसकी वजह से 40 हजार लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। यही नहीं नेपाल में चीनी निवेश के फेल होने की सूची काफी लंबी है। वहीं दुनियाभर के विशेषज्ञ बीआरआई को लेकर आगाह कर चुके हैं और उनका मानना है कि चीन इस परियोजना के जरिए दूसरे देशों में अपना दबदबा कायम करना चाहता है। वर्ष 2017 में दुनिया के 60 देशों ने बीआरआई को स्‍वीकृति दी थी और दक्षिण एशिया में नेपाल अग्रणी देश था। चीन की नजर नेपाल की प्राकृतिक संपदा और खनिज पदार्थों पर चीन ने नेपाल से वादा किया था कि वह शुरुआती वर्षों में 10 अरब डॉलर का निवेश करेगा। लेकिन अब लोगों को यह अहसास हो रहा है कि चीनी प्रॉजेक्‍ट में सबकुछ ठीक नहीं है। नेपाली कांग्रेस के एक वरिष्‍ठ नेता ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहा, 'वर्ष 2011 में चीन ने वादा किया था कि वह नेपाल का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रॉजेक्‍ट बूढ़ी गंडकी बनाएगा। इसे वर्ष 2022 में पूरा होना था लेकिन अभी तक चीनी कंपनी ने निर्माण कार्य भी शुरू नहीं किया है। रोचक बात यह है कि चीनी कंपनी को बिना किसी टेंडर के ही सितंबर 2018 में यह ठेका दे दिया गया था। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली उस समय चीन के इशारे पर नाच रहे थे और उन्‍होंने यह ठेका दे दिया। इस दौरान केपी शर्मा ओली ने किसी की बात भी नहीं सुनी। नेपाल सरकार ने कहा था कि विस्‍थापित लोगों को भरपूर मुआवजा दिया जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं और लोग बहुत असंतुष्‍ट हैं। वहीं अब यह परियोजना भी वित्‍तीय रूप से लागू करने योग्‍य नहीं रही है। वहीं नेपाल को यह भी डर सता रहा है कि चीन की इन विशाल परियोजनाओं का पर्यावरण पर बुरा असर पड़ सकता है और इस हिमालयी देश के लिए यह बेहद अहम है। चीन ने नेपाल में रेलवे दौड़ाने का समझौता किया है लेकिन नेपाली नेताओं को डर है कि वे इसमें लगने वाला 5 अरब डॉलर नहीं लौटा पाएंगे। उधर, विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि चीन की नजर नेपाल की प्राकृतिक संपदा और खनिज पदार्थों पर है। इसी वजह से अब बीआरआई पर फिर से विचार करने की मांग तेज हो रही है।


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