काबुल अफगानिस्तान में वर्ष 2020 में अमेरिका के साथ बातचीत शुरू होने के बाद जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में था वह मुल्ला बरादर। माना जा रहा था कि तालिबान की सरकार आने पर मुल्ला बरादर राष्ट्रपति बनेगा। हालांकि अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है। तालिबान के संस्थापक दिवंगत मुल्ला उमर के करीबी सहयोगी मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनाया जाना लगभग तय हो गया है। मुल्ला बरादर उनके अधीर काम करेंगे। आइए जानते हैं कि कौन मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद और कैसे वह मुल्ला बरादर पर भारी पड़ गए.... मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद के राष्ट्रपति के रूप में नामांकन की तालिबान के तीन प्रमुख नेताओं ने पुष्टि की है। मुल्ला मोहम्मद हसन वर्तमान में तालिबान के शक्तिशाली निर्णय लेने वाले निकाय, रहबारी शूरा या नेतृत्व परिषद के प्रमुख हैं। मोहम्मद हसन तालिबान के जन्मस्थान कंधार से ताल्लुक रखता है और आतंकी आंदोलन के संस्थापकों में से एक है। एक तालिबानी नेता के मुताबिक, ‘मोहम्मद हसन ने रहबारी शूरा के प्रमुख के रूप में 20 साल तक काम किया है और बहुत अच्छी प्रतिष्ठा अर्जित की। वह एक सैन्य पृष्ठभूमि के बजाय एक धार्मिक नेता हैं और अपने चरित्र और भक्ति के लिए जाने जाते हैं।’ संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में शामिल है मुल्ला हसन बताया जा रहा है कि मुल्ला हसन करीब 20 साल से शेख हैबतुल्ला अखुंजादा के करीबी रहे हैं और इसी वफादारी का इनाम उन्हें मिलने जा रहा है। हैबतुल्ला अखुंजादा ईरान की तरह से अफगानिस्तान का सुप्रीम लीडर बनने जा रहा है। यही नहीं मुल्ला हसन ने अफगानिस्तान में अपनी पिछली तालिबान सरकार के दौरान महत्वपूर्ण पदों पर काम किया था। विश्लेषकों के मुताबिक मुल्ला हसन के पक्ष में एक और बात जो गई वह है, उनका लो प्रोफाइल होना। राष्ट्रपति पद की दौड़ में मुल्ला बरादर के अलावा मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब और सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे प्रभावशाली तालिबानी नेता भी थे लेकिन बाजी मुल्ला हसन के हाथ लगती दिख रही है। अगर ये तीनों नेता राष्ट्रपति बनते तो मुल्ला हैबुल्ला अखुंजादा को चुनौती दे सकते थे और इसी वजह से तालिबान अब मुल्ला हसन पर दांव लगा रहा है। मुल्ला हसन का इतिहास देखें तो वह अभी संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में शामिल है। मुल्ला बरादर का अमेरिका के साथ नजदीकी उनके खिलाफ गया और उन्हें मुल्ला हसन का डेप्युटी बनना पड़ रहा है। आईएसआई ने मुल्ला बरादर को किनारे लगाया? कई विश्लेषकों का यह भी कहना है कि मुल्ला बरादर को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ मोहम्मद फैज के इशारे पर साइड लाइन किया गया है। पाकिस्तान नहीं चाहता है कि कोई प्रभावशाली नेता तालिबान सरकार में शीर्ष पर बैठे। उसे डर है कि कहीं मुल्ला बरादर अमेरिकी दबाव या किसी और के इशारे पर काम न करने लगे। पाकिस्तान ने हक्कानी नेटवर्क पर दांव लगाया है और वे चाहते हैं कि हक्कानी नेटवर्क का पूरे तालिबान सरकार पर कब्जा रहे। वे अपने कई लोगों को सरकार में शामिल करना चाहते हैं।
from World News in Hindi, दुनिया न्यूज़, International News Headlines in Hindi, दुनिया समाचार, दुनिया खबरें, विश्व समाचार | Navbharat Times https://ift.tt/3DQc1jI