वॉशिंगटन अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया के शीर्ष नेता आज पहली बार एक साथ बैठकर 'क्वॉड' शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे हैं। क्वॉड की इस बैठक पर हिंद- प्रशांत क्षेत्र के देश अपनी नजरें गड़ाए बैठे हैं। इनमें से कई देश ऐसे हैं जो साऊथ चाइना सी में चीन की दादागिरी से परेशान हैं लेकिन ठोस विकल्प के अभाव में ड्रैगन का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक चीनी ड्रैगन पर नकेल कसने के लिए बना यह 'क्वॉड' गुट कितना प्रभावी हो पाएगा, यह काफी कुछ अब भारत की भूमिका पर निर्भर करेगा। आइए समझते हैं पूरा मामला.... दरअसल, क्वॉड की अनौपचारिक शुरुआत वर्ष 2004 में भारत में आई भीषण सुनामी के समय हुई थी। इसके बाद वर्ष 2007 में जापान के तत्कालीन पीएम शिंजो आबे ने 'क्वॉड' की संकल्पना पर जोर दिया। क्वॉड का मकसद चीन की बड़ी चुनौती पर लगाम लगाना था। वर्ष 2017 में क्वॉड को और ज्यादा मजबूती मिली। अमेरिका की ट्रंप और अब बाइडन सरकार इसे बढ़ावा दे रही है। क्वॉड के चार सदस्य देश मार्च में वर्चुअल शिखर बैठक कर चुके हैं। अमेरिका में प्रमुखता से छाया रहेगा क्वॉड का मुद्दा थिंक टैंक स्टिम्सन सेंटर के एशिया स्ट्रेटजी के वरिष्ठ फेलो समीर लालवानी ने अलजजीरा से कहा, 'अमेरिका में ट्रंप के बाद बाइडन के आने, जापान और ऑस्ट्रेलिया में नई सरकारों के गठन के बाद भी यह क्वॉड की बैठक हो रही है। यह दर्शाता है कि क्वॉड में स्थायित्व है और आप कह सकते हैं कि यह कैसे आगे रहेगा। यह एक वास्तविक संस्था बनने जा रहा है...मुझे लगता है कि आने वाले समय में यह वॉशिंगटन के रक्षा और राजनयिक समुदाय के मन मस्तिष्क में छाया रहेगा।' लालवानी ने कहा कि ये चारों ही देश हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीनी आक्रामकता से चिंतित हैं और यह उनको एक समान आधार मुहैया कराता है। विश्लेषकों का कहना है कि क्वॉड अभी भी अपने जड़े जमा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान आपस में सहयोग करके लाभ उठा सकते हैं लेकिन उन्हें चीन के साथ जटिल संबंधों का भी डर सता रहा है। ट्रंप प्रशासन के दौरान ये तीनों ही देश चीन के प्रति चौकन्नापन दिखा चुके हैं लेकिन तीनों ने काफी हद तक चीन के साथ सीधे निपटना बेहतर समझा है। हालांकि ये तीनों ही देश इस बात पर जोर देते हैं कि क्वॉड चीन के सैन्य ताकत के खिलाफ है। भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की नौसेना मालाबार अभ्यास में साथ आ रही हैं। यही नहीं जापान ने पूर्वी चीन सागर में सेनकाकू द्वीप के पास चीन के दादागिरी के खिलाफ स्पष्ट तरीके से आवाज उठाई है। जापानी प्रधानमंत्री सुगा ने पिछले दिनों चेतावनी दी थी कि चीन का सैन्य विकास हमारे देश की शांति और समृद्धि के लिए खतरा पैदा कर सकता है। उन्होंने अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया था। क्वॉड में भारत की भूमिका पर टिका है भविष्य क्विंसी इंस्टीट्यूट में एक वरिष्ठ शोधकर्ता इथान पॉल कहते हैं कि भारत का क्वॉड के साथ बने रहने का फैसला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत दक्षिण चीन सागर को लेकर उतना चिंतित नहीं है जितना कि अन्य देश हैं। भारत चीन से लगती विवादित सीमा और हिंद महासागर में नौवहन की स्वतंत्रता को लेकर ज्यादा चिंतित है। भारत क्वॉड सदस्यों में एकमात्र ऐसा देश है जिसकी जमीनी सीमाएं चीन से लगती हैं। पॉल कहते हैं कि भारत को एक संतुलकारी भूमिका निभानी होगी। दोनों देशों के बीच सीमा पर हिंसक झड़प भी हो चुकी है। पॉल ने कहा, 'यह देखना अहम होगा कि भारत आने वाले समय में यह पूरा खेल किस तरह से खेलता है, वह भी क्वॉड के साथ रिश्ते बरकरार रखते हुए तथा एशिया को लेकर अपनी भूमिका को ध्यान में रखते हुए। मेरा मानना है कि इसका न केवल क्वॉड पर बल्कि पूरे इलाके के भविष्य पर इसका असर पड़ेगा।' उन्होंने कहा कि खासतौर पर यह देखना होगा कि ताइवान के आसपास तनाव को लेकर भारत क्या भूमिका निभाता है जो अभी अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के लिए मुख्य केंद्र बिन्दू बना हुआ है। भारत ताइवान के तनाव को लेकर क्या भूमिका निभाता है, इसका क्वॉड के भविष्य पर गंभीर असर पड़ेगा। भारत ने क्वॉड के सुरक्षा वाले पहलू को कम करके दिखाया शोधकर्ता इथान पॉल ने कहा कि अभी भारत ने क्वॉड शिखर बैठक से ठीक पहले सुरक्षा वाले पहलू को जानबूझकर कम करके दिखाया है। भारतीय विदेश सचिव ने के शब्दों में कहें तो, 'मैं स्पष्ट कर दूं कि क्वाड और ऑकस समान प्रकृति के समूह नहीं हैं... क्वाड एक बहुपक्षीय समूह है।' श्रृंगला ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया का नया सुरक्षा समझौता न तो क्वाड से संबंधित है और न ही समझौते के कारण इसके कामकाज पर कोई प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि दोनों समान प्रकृति के समूह नहीं हैं।
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