AUKUS: ऑस्ट्रेलियाई परमाणु पनडुब्बी डील से बौखलाया चीन, कहा- परमाणु हमले की करनी होगी तैयारी

पेइचिंग हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीति को चुनौती देने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच परमाणु पनडुब्बियों को लेकर एक समझौता हुआ है। इसे 'AUKUS डील' कहा जा रहा है। चीन क्षेत्र में इन तीन देशों के साथ आने से बौखला गया है। चीन की घबराहट का आलम इस हद तक पहुंच चुका है कि वह अब परमाणु हमले की धमकी दे रहा है। एक वरिष्ठ चीनी राजनयिक ने सुझाव दिया है कि देश को परमाणु हथियारों पर अपनी 'No-First-Use' की नीति को अब छोड़ देना चाहिए। अपनी नीति को खत्म कर दे चीनसंयुक्त राष्ट्र में पूर्व राजदूत Sha Zukang ने कहा है कि China Arms Control and Disarmament Association Beijing को परमाणु हथियारों को लेकर अपने रुख पर दोबारा विचार और सुधार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमेरिका चीन के पड़ोस में अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ा रहा है और नया सैन्य गठबंधन बना रहा है। लिहाजा चीन को भी अपनी 'No-First-Use' नीति को भी खत्म कर देना चाहिए। चीन का दुश्मन बन सकता है अमेरिकाशा जुकांग ने तर्क दिया, 'सिर्फ जवाबी कार्रवाई में ही परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की नीति से चीन नैतिक रूप से आगे हो सकता है लेकिन यह तब तक ठीक नहीं है जब तक चीन-अमेरिका समझौते में इस बात पर सहमति न हो कि दोनों में से कोई भी पक्ष पहले परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं करेगा'। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में अमेरिका चीन को अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी और संभवतः दुश्मन के रूप में देख सकता है। चीन के पास मौजूद हैं 300 परमाणु मिसाइलेंचीन ने 1968 में एक नीति अपनाई थी जिसके मुताबिक चीन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल सिर्फ 'जवाबी कार्रवाई' के लिए करेगा। पश्चिमी रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि परमाणु हथियार विकसित करने वाला पांचवां देश चीन 250 से 300 मिसाइलों से लैस है। चीन ने AUKUS की काट खोजने के लिए व्यापारिक नीति को अपनाया है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के लिएकॉम्प्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फ़ॉर ट्रांस-पैसिफ़िक पार्टनरशिप (CPTPP) सौदे में शामिल होने के लिए आवेदन किया है। बड़ी बात यह है कि अमेरिका ने इस पार्टनरशिप की स्थापना चीन की बढ़ते दबदबे को खत्म करने के लिए किया था। लेकिन, 2017 में डोनाल्ड ट्रंप ने इस पार्टनरशिप से अमेरिका को बाहर निकाल लिया था। अगर चीन इसमें शामिल हो जाता है तो जाहिर सी बात है कि प्रशांत महासागर के जरिेए होने वाले व्यापार पर उसका एकछत्र राज हो जाएगा।


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