चुन-चुनकर निशाना बना रही थी एयरफोर्स, पाक के 90 हजार सैनिकों को टेकना पड़े घुटने

इंदौर. हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव छिड़ा तब-तब 1971 के युद्ध का जिक्र जरूर हुआ है। इस युद्ध में भारतीय सेना ने अपने साहस और पराक्रम के दम पर पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। इस जंग के स्वर्णिम पचास साल पूरे होने के उपलक्ष्य में स्वर्णिम विजय मशाल यात्रा निकाली जा रही है। मंगलवार को ये यात्रा इंदौर आकर देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी परिसर पहुंची। जंग का हिस्सा रहे रिटा. एयर मार्शल हरीश मसंद ने बताया इस जंग में पाकिस्तान ने सिर्फ 13 दिनों में ही हार मान ली।

तत्कालीन आईएएफ एयर मार्शल हरी चंद दीवान ने पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी से इसकी वजह पूछा तो उन्होंने वर्दी पर विंग की ओर इशारा करते कहा कि हमें इस वजह से हार मानना पड़ी। हमारे सैनिक जहां-जहां छिप रहे थे लेकिन, भारतीय वायुसेना हमें कहीं नहीं छोड़ रही थी। इसी जंग का हिस्सा रहे रिटा.ब्रिगेडियर मदन मोहन भनोट और डॉ.सतीश मोतीवाला ने संस्मरण साझा किए। स्वर्णिम विजय मशाल महू से इंदौर आई।

डीएवीवी के तक्षशिला परिसर में खुली जीप पर लाई गई मशाल की भव्य आगवानी की गई। विद्यार्थियों व शिक्षकों ने मशाल व सैनिकों पर फूलों की बरसात करते हुए हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए। इस दौरान कुलपति प्रो.रेणु जैन भी खुली जीप में सवार हुई। रैली के रूप में सभी यूनिवर्सिटी ऑडिटोरियम तक पहुंचे। ऑडिटोरियम में युद्ध के संस्मरण साझा करते हुए मसंद ने कहा कि हमें पता था कि कुछ बड़ा होने वाला है। उस समय पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू कर दी थी और वहां से प्रवासी भारत आने लगे थे और भयानक कहानियां सुना रहे थे। पाकिस्तानी वायु सेना ने 4 दिसंबर को भारत के पश्चिमी हिस्सों में हमारे 11 हवाई अड्डों पर हमला किया। अगले ही दिन हमने पूर्वी पाकिस्तान के हवाई अड्डों पर हमले शुरू कर दिए। कुछ ही दिनों में हम उनके सभी हवाई अडड्डे नष्ट कर चुके थे। 15 दिसंबर को जब हमने ढाका में गवर्नर हाउस पर हमला किया तो तत्कालीन गवर्नर अब्दुल मोटालेब मलिक कथित तौर पर एक टेबल के अंदर छिप गया और वहां से ही इस्तीफा लिख दिया। इस मौके पर कुलपति प्रो.रेणु जैन ने कहा हमें अपने देश की सेना पर गर्व है। भारतीय सेना दुनिया में बेजोड़ा है और जब-जब देश खतरे में आया तब सैनिकों ने जान की बाजी दांव पर लगाते हुए किला लड़ाया है।

पांच पीढ़ी से कर रहे देशसेवा

रिटायर्ड ब्रिगेडियर मदन मोहन भनोट ने कहा कि मेरी पांच पीढ़ी सेना में है और युद्ध भी लड़े है। 1971 के युद्ध की यादें ठीक वैसी ही जेहन में दर्ज है। जब पाकिस्तान वायु सेना ने भारत पर हमलाकिया, तो मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि मुझे बिना किसी हिचकिचाहट के युद्ध मेंजाना चाहिए। उसने कहा कि अगर मैं युद्ध में शहीद हो गया तो वह हमारे दोनों बेटों की देखभाल करेगी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैनिकों का मनोबल बढ़ाया। एक बार उन्होंने अपनी उंगली को पीछे (पूर्वी पाकिस्तान की ओर) की ओर इशारा करते हुए उसने कहा कि अगली बार मैं आपसे वहीं मिलूंगी। उनकीबातों ने हममें इतना साहस भर दिया और हमने पूर्वी पाकिस्तान के 67 किलोमीटरअंदर तक कब्जा कर लिया। जब हम युद्ध जीते,तो वे हमसे वहां मिलने आई। डॉ.सतीश मोतीवाला ने बताया कि जब हमारी ड्यूटी लगी तो पता नहीं था कहां जा रहे है। पहले कलकत्ता और फिर अगरतला ले जाया गया।अगली सुबह जब हम जागे तो हमें इसकी भारत-पूर्वी पाकिस्तान सीमा के बारे में बताया गया। हमने वहां अस्पताल स्थापित किया। यहां घायल सैन्य कर्मियों, मुक्ति वाहिनी गुरिल्लाओं और पाकिस्तानी सैनिकों का इलाज किया गया।



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