मनीष यादव
इंदौर. श्रीकृष्ण के बाल रूप से लेकर रासलीला और दूसरी लीलाओं के कई रूप देखने को मिल जाते हैं, लेकिन इंदौर के पास एक गांव में कन्हैया की एक अनोखी मूर्ति है। यहां उनकी सुंदर मुखड़े पर मूंछें भी देखी जा सकती हैं। ग्रामीणों की मानें तो यह करीब 300 साल पुराना मंदिर है। समय के साथ मंदिर के स्वरूप में कुछ बदलाव जरूर किए गए लेकिन आज भी मूर्ति और गर्भगृह वैसा ही है।
हम बात कर रहे हैं देपालपुर विधानसभा के पहले गांव कहे जाने वाले ग्राम गिरोता के राधा-कृष्ण मंदिर की। यहां पर राधा-कृष्ण की मूर्ति है। श्रीकृष्ण मूंछ वाले हैं। किसने ये मूंछें बनाईं, इस बारे में किसी को जानकारी नहीं है। इसे चौराहे वाले बा के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर पहले कच्चा था। अब पक्का हो गया है। गांव के अंदर जाने का रास्ता भी इस मंदिर से होकर जाता है।
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नहीं हिली थी मूर्ति
मंदिर के पुजारी प्रेम शर्मा ने बताया कि मंदिर तीनमंजिला बना हुआ है। सबसे ऊपर श्रीकृष्ण विराजे हैं। पांच पीढ़ी से उनका परिवार मंदिर में सेवा कर रहा है। यह वर्षों पुराना है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान की मूंछों वाली प्रतिमा है। एक समय गांव में आग लग गई थी। इस भीषण आग में कोई भी अछूता नहीं रहा, तब मंदिर कच्चा हुआ करता था। मूर्ति को नुकसान नहीं पहुंचे, इसलिए वहां से उसे हटाकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाने के बारे में सोचा। वे मूर्ति को उठाने गए तो हिली भी नहीं। इस पर मंदिर में ही ग्रामीणों ने अपने आपको आग से बचाया था। इसके बाद कई बार मूर्ति अपने स्थान से हिली है। यहां किसी ने मन्नत मांगी तो वह जरूर पूरी होती है।
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मंदिर के नीचे से ही आना-जाना
गांव के ही वृद्ध वासुदेव पांचाल ने बताया कि मंदिर की स्थापना के समय यहां पर विशाल दरवाजा हुआ करता था। इस दरवाजे से होकर ही गांव के अंदर जाने का रास्ता था। मंदिर और उसका यह दरवाजा ग्रामीणों के लिए सुरक्षा का एक मजबूत सहारा था। पुराने समय में चोर-डकैतों से बचाने में यह बड़ी भूमिका निभाता। समय के साथ अब गांव फैल गया है और मंदिर की दूसरी ओर भी घर बन गए, लेकिन आज भी मंदिर के नीचे से आने-जाने का रास्ता है।
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बारिश की लगाते हैं गुहार
सरपंच शिवसिंह ने बताया कि किसी भी आपातकाल की स्थिति में ग्रामीणों ने जब भी मंदिर में आकर गुहार लगाई है, तब-तब भगवान ने गांव पर आए संकट को दूर किया है। अगर बरसात नहीं हो तो यहां पर कीर्तन बैठाया जाता है। इस अखंड कीर्तन के बैठने के चार से पांच दिन के अंदर ही बादल छाते हैं और पानी बरस जाता है।
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