नई दिल्ली कथित जासूसी कांड को लेकर दर्ज शिकायत पर सुनवाई करने को राजी हो गया है। संसद के मॉनसून सत्र शुरू होने से ठीक पहले देश की राजनीति में बवंडर खड़ा कर देनेवाले खुलासे की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांगें हो रही हैं। इस बीच सुनवाई के लिए सर्वोच्च अदालत की सहमति को मामले में बड़ा डेवलपमेंट के तौर पर देखा जा रहा है। अब शीर्ष अदालत वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार की जनहित याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट जज से जांच की मांग इस याचिका में रिटायर या सुप्रीम कोर्ट के सीटिंग जज से पेगासस जसूसी केस की जांच की मांग की गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के समक्ष जनहित याचिका का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा था कि जहां तक नागरिक स्वतंत्रता का संबंध है, न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में भी पेगासस के व्यापक परिणाम सामने आ रहे हैं। उनकी दलील है कि यह मामला तत्कालिक राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है, उसमें विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और यहां तक कि न्यायपालिका की जसूसी हुई है जिसकी जांच जरूरी है। आलोचना को दबाने की कोशिश का आरोप सीनियर जर्नलिस्ट एन राम और शशि कुमार ने याचिका में कहा है कि जाने-माने पत्रकारों, राजनेताओं आदि का इजराइली स्पाईवेयर पेगासस से जासूसी की गई है जो एक गंभीर मामला है। उनकी दलील है कि अगर अवैध तरीके से फोन हैकिंग हुई है और इसके लिए पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल हुआ है, तो यह एक तरह से भारत में अभिव्यक्ति की आजादी और असहमति को दबाने की कोशिश है। किसने लिया है पेगासस का लाइसेंस? याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह इस बात का खुलासा करे कि क्या किसी सरकारी एजेंसी ने पेगासस स्पाईवेयर के इस्तेमाल का लाइसेंस ले रखा है। किसी तरह से सर्विलांस के लिए क्या सरकारी एजेंसी के पास पेगासस स्पाईवेयर का लाइसेंस है, ये बताया जाए। याचिका में कहा गया है कि विश्वभर के मीडिया ने यह खबर दी है कि भारत में 142 से ज्यादा लोगों जिनमें पत्रकार, वकील, मंत्री, विरोधी दल के नेता, सिविल सोसायटी के एक्टविस्ट और संवैधानिक पद पर बैठे लोगों को निशाना बनाया गया है और पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर उनका सर्विलांस किया गया है। निजता ही नहीं, जीवन के अधिकार पर चोट याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में कहा है कि पेगासस के जरिए मिलिट्री लेवल का सर्विलांस किया गया है जो स्वीकार्य नहीं हो सकता है। लोगों के जीवन के अधिकार में निजता का अधिकार शामिल है। संविधान ने अभिव्यक्ति की आजादी दे रखी है, साथ ही जीवन और स्वतंत्रता का भी अधिकार है। इस पेगासस स्पाईवेयर के माध्यम से जर्नलिस्टों, एक्टिविस्टों, मिनिस्टरों और संवैधानिक पद पर बैठे लोगों को टारगेट किया गया और उनके फोन को हैक किए गए। यह उनके मौलिक अधिकार में गंभीर दखल है। लोगों के जीवन के अधिकार के बुनियाद को खतरा उत्पन्न हुआ है और यह सब डरावना एहसास है। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस तरह से फोन की हैकिंग आईटी एक्ट की धारा-66, 66 बी, 66 ई, 66 एफ के तहत अपराध है। इस तरह से किया गया अटैक साइबर टेरोरिज्म है और इसके बहुआयामी राजनीतिक और सुरक्षा को लेकर गंभीर प्रभाव है। एसआईटी जांच की भी मांग इससे पहले 22 जुलाई को पेगासस जासूसी कांड की कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि जासूसी कांड ने भारतीय लोकतंत्र पर हमला किया है और देश की सुरक्षा और जूडिशिरी की स्वतंत्रा का मुद्दा इसमें शामिल है। अर्जी में कहा गया है कि जर्नलिस्टों, एक्टिविस्टों, पॉलिटिकल लीडरों और अन्य की इजराइली स्पाइवेयर पेगासस का इस्तेमाल कर जासूसी कराए जाने की खबरों की कोर्ट की निगरानी में जांच कराए जाए।
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