अंटार्कटिका में मिला चार लाख साल पुराना उल्‍कापिंड, धरती को 'महासंकट' से दिलाएगा मुक्ति!

लंदन ब्रिटेन के केंट स्थित अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के एक दल को अंटार्कटिका की बर्फ की चादर के नीचे 4 लाख 30 हजार साल पुराने उल्‍कापिंड के टुकड़े मिले हैं। इस खोज से वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गई। उन्‍हें उम्‍मीद है कि इस प्राचीन उल्‍कापिंड की मदद से इस बात का आकलन किया जा सकेगा कि मध्‍यम आकार के ऐस्‍टरॉइड से धरती को किस तरह का खतरा हो सकता है। शोधकर्ताओं के दल ने कहा कि उल्‍कापिंड की मदद से ऐस्‍टरॉइड के टकराने पर होने व‍िनाशकारी परिणामों का भी आकलन किया जा सकेगा। वैज्ञानिकों को यह उल्‍कापिंड के टुकड़े पूर्वी अंटार्कटिका के वालनुम्‍फजेलेट चोटी पर मिले हैं। इस खोज से संकेत मिलता है कि कथित रूप से निचली कक्षा में चक्‍कर लगाने वाला उल्‍कापिंड धरती पर बहुत तेजी से गिरा था। उन्‍होंने बताया कि यह उल्‍कापिंड कम से कम 100 मीटर का रहा होगा। उल्‍कापिंड का प्रभाव करीब 2000 किमी तक यूनिवर्सिटी ऑफ केंट के वैज्ञानिक डॉक्‍टर मैटथिआस वॉन ने कहा कि इस उल्‍कापिंड का प्रभाव करीब 2000 किमी या लगभग एक उपमहाद्वीप तक रहा होगा। साइंस अडवांस जर्नल में प्रकाशित जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि इस तरह की घटनाओं के साक्ष्‍य जुटाना बेहद अहम है क्‍योंकि इसके जरिए उल्‍कापिंडों के पृथ्‍वी के टकराने के इतिहास और खतरनाक ऐस्‍टरॉइड के खतरनाक प्रभावों को समझा जा सकेगा। डॉक्‍टर वॉन ने कहा कि ऐस्‍टरॉइड के धरती के घनी आबादी वाले इलाके में टकराने की आशंका बहुत ही कम है लेकिन इसका प्रभाव काफी दूर तक हो सकता है। पृथ्‍वी की सतह के केवल 1 प्रतिशत हिस्‍से में घनी आबादी रहती है। वॉन ने कहा कि ऐस्‍टरॉइड के टकराने का असर हजारों क‍िलोमीटर दूर तक महसूस किया जा सकेगा। उन्‍होंने कहा कि इस उल्‍कापिंड की मदद से धरती पर होने वाले असर को समझा जा सकेगा।


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