ब्लॉगः लेफ्ट का तंबू उखाड़ने के लिए ममता धार्मिक पहचान की राजनीति को हवा देती रहीं

अब जबकि पश्चिम बंगाल में चुनाव होने वाले हैं, मुझे वह दिन याद आ रहा है जब 1977 में पहली वाम मोर्चा सरकार बनने से उत्साहित होकर मैंने कलकत्ता के आसपास घूमने का मन बनाया था ताकि जान सकूं कि साधारण जन और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच रिश्ते कैसे हैं। कलकत्ता के बाहरी क्षेत्र में एक उपचुनाव होना था। सीपीएम के स्थानीय सचिव से जब मैंने उपचुनाव के संभावित परिणाम के बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि अगर पार्टी फलां चटर्जी को खड़ा करती है तो वह 1 लाख 25 हजार वोटों से जीतेगा और अमुक बंदोपाध्याय को उम्मीदवार बनाती है तो हम 99,000 वोटों से जीतेंगे। इस फर्क को उन्होंने यूं समझाया कि 26,000 वोट चटर्जी को अपनी निजी लोकप्रियता के कारण अधिक मिलेंगे जबकि पार्टी के चुनाव चिह्न पर कोई भी लड़ेगा तो वह 99,000 वोटों से जीतेगा।

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