म्‍यांमार में सेना के तख्‍तापलट से भारत के लिए बढ़ी मुश्किल, चीनी ड्रैगन का बढ़ा खतरा

इंद्राणी बागची नई दिल्‍ली/यंगून म्‍यांमार में सेना के एक बार फिर से सत्‍तापलट करने के बाद संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में पश्चिमी देशों के कठोर कदम उठाने की चर्चा के दौरान भारत ने खुद को पीछे कर लिया। सूत्रों के मुताबिक इस चर्चा के बाद मीडिया को कोई बयान भी नहीं जारी किया गया। म्‍यांमार के प्रत‍िबंधों से बचने की सबसे बड़ी वजह यह रही कि रूस और चीन ने पश्चिमी देशों के प्रयासों पर पानी फेर दिया। म्‍यांमार पर सुरक्षा परिषद में चर्चा के दौरान भारत ने लोकतंत्र का समर्थन करते समय खुद को बेहद असहज स्थिति में पाया। हालांकि सेना के सत्‍ता संभालने के बाद भारत और सैन्‍य जुंता के बीच कोई संपर्क नहीं हुआ लेकिन नई दिल्‍ली ने तख्‍तापलट के बाद भी म्‍यांमार में विकास कार्यों को जारी रखने का फैसला किया है। खासतौर पर रोहिंग्‍या बहुल रखाइन राज्‍य में यह विकास कार्य जारी रहेगा। रखाइन राज्‍य में भारत सितवे बंदरगाह और रोहिंग्‍या मुस्लिमों के लिए घर बना रहा है। चीन पर से निर्भरता घटाने के लिए म्‍यांमार ने लोकतंत्र का दरवाजा खोला अमेरिका ने पहले ही म्‍यांमार की घटना को सैन्‍य तख्‍तापलट करार दिया है जिससे ऐसी आशंका है कि वह म्‍यांमार के खिलाफ और ज्‍यादा प्रतिबंध लगा सकता है। हालांकि अगर पहले के अनुभवों को देखें तो प्रतिबंधों का कोई खास असर म्‍यांमार पर नहीं पड़ता है। ऐसी आशंका है कि अगर अमेरिका म्‍यांमार पर प्रतिबंध लगाता है तो वह चीन की गोद में जा सकता है। माना जाता है कि चीन पर से अपनी निर्भरता को घटाने के लिए ही म्‍यांमार ने वर्ष 2010-11 में लोकतंत्र के लिए दरवाजा खोला था। चीन और रूस ने इस तख्‍तापलट पर बहुत ठंडी प्रतिक्रिया दी है और आस‍ियान देशों ने कहा है कि आपस में बातचीत करके संवाद, मेलमिलाप करके सामान्‍य स्थिति की बहाली का आह्वान किया है। जापान ने म्‍यांमार की घटना को तख्‍तापलट करार दिया है लेकिन उसने आर्थिक सहायता को जारी रखने का फैसला किया है। जापान ने कहा कि वह स्थितियों को देखकर अपनी प्रतिक्रिया देगा। अमेरिका और ऑस्‍ट्रेलिया ने कड़े बयान द‍िए हैं और प्रतिबंधों की धमकी दी है। म्‍यांमार की सैन्‍य सरकार से अच्‍छे संबंध भारत के लिए जरूरी भारत म्‍यांमार की सैन्‍य सरकार से इसलिए संपर्क बनाए रखना चाहता है क्‍योंकि ऐसा करने के कई कारण हैं। म्‍यांमार को कई उग्रवादी गुट स्‍वर्ग की तरह से मानते हैं, इसका मतलब है कि भारत को इनसे निपटने के लिए वहां के सेना की मदद की जरूरत होगी। चीन म्‍यांमार में सक्रिय अराकान आर्मी को समर्थन देता है जो भारत के कलादान प्रॉजेक्‍ट पर हमले करती है। इससे निपटने के लिए भारत को म्‍यांमार के सेना की जरूरत है। सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि भारत चाहता है कि म्‍यांमार वा आर्मी के खिलाफ ऐक्‍शन ले जिसे चीन अपना समर्थन देता है। वा आर्मी न केवल म्‍यांमार के सुरक्षा बलों पर हमले करती है, बल्कि म्‍यांमार और भारत में सक्रिय उग्रवादी गुटों को हथियारों की सप्‍लाइ करती है।


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