हिन्दू पंचांग के अनुसार आमलकी एकादशी फाल्गुन माह के कृष्ण शुक्ल पक्ष को आती है। इसे आमलक्य एकादशी भी कहा जाता है। सामान्यत: यह हर साल फरवरी या मार्च महीने में मनाई जाती है। ऐसे में इस बार यानि 2021 में आमलकी एकादशी 25 मार्च को है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार आमलकी का मतलब आंवला होता है, जिसे हिन्दू धर्म और आयुर्वेद दोनों में श्रेष्ठ बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है। मान्यता के अनुसार आंवले के वृक्ष में श्री हरि और लक्ष्मी जी का वास होता है।
आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होने की वजह से उसी के नीचे भगवान का पूजन किया जाता है, यही आमलकी एकादशी कहलाती है। इस दिन आंवले का उबटन, आंवले के जल से स्नान, आंवला पूजन, आंवले का भोजन और आंवले का दान करना चाहिए।
इसके अलावा इस एकादशी को आंवला एकादशी और आमलका एकादशी नाम से भी जाना जाता है। आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा कर प्रसन्न किया जाता है।
इस दिन की जाती है आंवले के पेड़ की पूजा-
इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पीपल और आंवले के वृक्ष को हिंदू धर्म में देवता के समान माना जाता है। मान्यता है कि जब भगवान श्री हरि विष्णु ने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा जी को जन्म दिया, उसी समय भगवान विष्णु ने आंवले के वृक्ष को भी जन्म दिया। इसी कारण आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवले के वृक्ष के हर अंग में ईश्वर का निवास माना जाता है।
आमलकी एकादशी महत्व-
एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सौ गायों को दान करने के बराबर फल मिलता है। जो लोग इस व्रत को नहीं करते हैं तो वह इस दिन भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करें और स्वयं इसे ग्रहण भी करें।
आमलकी एकादशी शुभ मुहूर्त-
पारणा मुहूर्त- 26 मार्च को 06:18:53 से 08:46:12 तक।
अवधि-2 घंटे 27 मिनट
आमलकी एकादशी व्रत की पूजा विधि
आमलकी एकादशी में आंवले का विशेष महत्व है। इस दिन पूजन से लेकर भोजन तक हर कार्य में आंवले का उपयोग होता है। आमलकी एकादशी की पूजा विधि इस प्रकार है:
1. इस दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प करना चाहिए।
2. व्रत का संकल्प लेने के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। घी का दीपक जलकार विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
3. पूजा के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित करना चाहिए। अगर आंवले का वृक्ष उपलब्ध नहीं हो तो आंवले का फल भगवान विष्णु को प्रसाद स्वरूप अर्पित करें।
4. आंवले के वृक्ष का धूप, दीप, चंदन, रोली, पुष्प, अक्षत आदि से पूजन कर उसके नीचे किसी गरीब, जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
5. अगले दिन यानि द्वादशी को स्नान कर भगवान विष्णु के पूजन के बाद जरुतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को कलश, वस्त्र और आंवला आदि दान करना चाहिए। इसके बाद भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।
आमलकी एकादशी व्रत कथा-
प्राचीन काल में चित्रसेन नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्व था और सभी प्रजाजन एकादशी का व्रत करते थे। वहीं राजा की आमलकी एकादशी के प्रति बहुत श्रद्धा थी।
एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गये। तभी कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने राजा को घेर लिया। इसके बाद डाकुओं ने शस्त्रों से राजा पर हमला कर दिया। मगर देव कृपा से राजा पर जो भी शस्त्र चलाए जाते वो पुष्प में बदल जाते।
डाकुओं की संख्या अधिक होने से राजा संज्ञाहीन होकर धरती पर गिर गए। तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और समस्त राक्षसों को मारकर अदृश्य हो गई। जब राजा की चेतना लौटी तो, उसने सभी राक्षसों का मरा हुआ पाया। यह देख राजा को आश्चर्य हुआ कि इन डाकुओं को किसने मारा? तभी आकाशवाणी हुई- हे राजन! यह सब राक्षस तुम्हारे आमलकी एकादशी का व्रत करने के प्रभाव से मारे गए हैं। तुम्हारी देह से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है। इन्हें मारकर वहां पुन: तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर गई। यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और वापस लौटकर राज्य में सबको एकादशी का महत्व बतलाया।
आमलकी एकादशी (Ekadashi) पर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा की जाती है। मान्यता है कि उनके पूजन से हर मनोकामना पूर्ण होती हैं। पुराणों में भी इस एकादशी का महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
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