हाथरस कांड: आरोपियों और पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट कराएगी UP सरकार, जानें क्या है ये

नई दिल्ली हाथरस कांड पर चौतरफा दबाव के बाद यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ऐक्शन में आ गई है। शुक्रवार दोपहर को सीएम योगी ने ट्वीट कर कहा कि अपराधियों का समूल नाश सुनिश्चित है और ऐसी सजा मिलेगी, जो नजीर बनेगी। रात होते-होते हाथरस के एसपी विक्रांत वीर, सीओ राम शब्द, इंस्पेक्टर दिनेश कुमार वर्मा, एसआई जगवीर सिंह पर निलंबन की गाज गिर गई। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूपी सरकार सच्चाई की तह तक जाने के लिए इस मामले में आरोपियों के साथ-साथ पीड़ित पक्ष का पॉलिग्राफ यानी लाइ-डिटेक्टर या फिर नार्को टेस्ट कराएगी। आइए समझते हैं कि क्या होते हैं पॉलिग्राफ या नार्को टेस्ट। जिसका पॉलिग्राफ, नार्को या ब्रेन मैपिंग टेस्ट होना है, उसकी सहमति जरूरी है पॉलिग्राफ, नार्को और ब्रैन मैपिंग टेस्ट दरअसल झूठ को पकड़ने की तकनीक होती हैं। भारत में मई 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इन जांचों को गैरकानूनी ठहरा दिया था। हालांकि, कोर्ट ने आपराधिक मामलों में इन जांचों को संबंधित व्यक्तियों की सहमति से करने की इजाजत दी है। आइए सबसे पहले समझते हैं कि पॉलिग्राफ टेस्ट क्या है। क्या है पॉलिग्राफ टेस्ट और कैसे करता है काम? जैसा कि ऊपर बताया गया है कि यह झूठ पकड़ने की एक तकनीक है। संबंधित शख्स से पूछताछ होती है और जब वह जवाब देता है, उस वक्त एक विशेष मशीन की स्क्रीन पर कई ग्राफ बनते हैं। व्यक्ति की सांस, हृदय गति और ब्लड प्रेशर में बदलाव के हिसाब से ग्राफ ऊपर-नीचे होता है। ये तो रही तकनीक की बात। आखिर कोई कैसे समझेगा कि संबंधित शख्स झूठ बोल रहा है या सच? इसका जवाब उसी ग्राफ में छिपा होता है। ग्राफ में अचानक असामान्य बदलाव दिखने लगे तो इसका मतलब है कि बंदा झूठ बोल रहा है। इस टेस्ट को करते वक्त शुरुआत में बहुत ही सामान्य से प्रश्न पूछे जाते हैं, जैसे- नाम, पिता का नाम, उम्र, पता और परिवार से जुड़ी जानकारियां। फिर अचानक संबंधित अपराध के बारे में सवाल किया जाता है। अचानक इस तरह से क्राइम से जुड़े सवाल पर अगर शख्स की धड़कन, सांस या बीपी बढ़ जाती है और ग्राफ में बदलाव दिखता है। अगर ग्राफ में बदलाव है तो इसका मतलब वह झूठ बोल रहा है और अगर बदलाव नहीं दिख रहा तो वह गलत बोल रहा है। क्या है नार्को टेस्ट और कैसे काम करता है? यह भी झूठ पकड़ने वाली एक तकनीक है। इसमें संबंधित शख्स को कुछ दवाइयां या इंजेक्शन दी जाती हैं। आम तौर पर ट्रूथ ड्रग नाम की एक साइकोऐक्टिव दवा दी जाती है या फिर सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन लगाया जाता है। इस दवा के असर से शख्स अर्धबेहोशी की हालत में चला जाता है यानी न उसे पूरी तरह होश होता है और न ही पूरी तरह बेहोश होता है। इस स्थिति में वह सवालों का सही-सही जवाब देता है क्योंकि वह अर्धबेहोशी की वजह से झूठ गढ़ पाने में नाकाम होता है। कभी-कभी गलत भी होते हैं नतीजे ऐसा नहीं है कि पॉलिग्राफ, नार्को या ब्रेन मैपिंग टेस्ट के नतीजे शत-प्रतिशत सही ही आएं। कुछ हार्डकोर क्रिमिनल इन टेस्ट को भी चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों की माने तो अगर इन टेस्ट को ठीक तरीके से किया जाए तो सही नतीजे निकलते हैं।


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