इंदौर। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के अभियान की शुरुआत इसी शहर से की थी। 102 साल पहले जब वे इंदौर पहुंचे तो उनके स्वागत में इंदौरवासियों ने जो अपनत्व दिखाया, उसे आज भी दुनिया याद करती है।
इंदौर के इतिहास में यह दिन आज भी याद किया जाता है। इसी दिन महात्मा गांधी पहली बार होलकर स्टेट के रेलवे से इंदौर आए थे। उनके स्वागत में इंदौरवासियों का हुजूम उमड़ पड़ा था, 28 मार्च 1918 सुबह 10 बजे खंडवा से आने वाली रेलगाड़ी की तरफ टकटकी लगाए हुए लाखों लोग इंतजार स्टेशन और उसके आसपास जमा हो गए थे। वे गांधीजी की एक झलक देखने को बेताब थे। ट्रेन के रुकते ही उसमे से सबसे पहले कस्तूरबा गांधी उतरीं तो पता चला गांधी जी अगली गाड़ी से आ रहे हैं। 11.30 बजे खंडवा से इंदौर आने वाली दूसरी ट्रेन का इंतजार लोग करने लगे। ट्रेन 12 बजे इंदौर पहुंची। सैकड़ों लोग उनके डिब्बे की तरफ दौड़ पड़े। गांधी जी को देख लोग आश्चर्यचकित रह गए।
रेलवे स्टेशन के बाहर भी अद्भुत नजारा था। चारों तरफ जनता की भीड़ थी। लोग बापू को आदर और प्रेम से देखने के लिए आतुर थे। बापू को विशाल जुलूस के साथ ले जाने को चार घोड़ों वाली बग्घी सरकारी अमले के साथ खड़ी थी। जनता का प्रेम ही था कि उन्होंने बग्घी से घोड़ों को अलग कर दिया और स्वयं ही उसे खींचने की तैयारी में जुट गए। हालांकि बापू इससे सहमत नहीं हुए और उन्होंने बग्घी पर बैठने से ही मना कर दिया था। गांधी जी के साथ आए लोगों ने कहा- महात्माजी पैदल जाएंगे, लेकिन लोगों का नारा था महात्माजी को हाथों हाथ बग्घी से ले जाएंगे। अन्त में जनता की जीत हुई और गांधीजी को बग्गी में बैठाकर जनता ने अपने हाथों से खींचा था। उनका जुलूस शहर के कई मार्गों से होते हुए राजबाड़ा के पास स्थित खजूरी बाजार पहुंचा। यहां आर्य समाज स्कूल की छात्राओं ने महात्मा गांधी की वंदना का पाठ किया। आर्य सेवा समिति ने अभिनंदन पत्र प्रदान किया। महात्मा गांधी चार दिन इंदौर में ही रुके थे।
यही से चलाया था हिन्दी का अभियान
महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और इसके तीन वर्ष बाद 28 मार्च 1918 को सेंट्रल इंडिया की पहली यात्रा पर थे। इंदौर पहुंचने के बाद इसी जमीन से महाराजा होलकर से उन्होंने अपने सभी विभागों में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाने देने का अनुरोध किया तो वे इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए। उन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने और पूरे भारतवर्ष फैलाने के लिए भी योगदान दिया। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने और पूरे भारतवर्ष में इसके प्रचार-प्रसार की नींव इंदौर में रखी गई थी। 29 मार्च 1918 में आयोजित अष्टम हिन्दी साहित्य सम्मेलन के मंच से महात्मा गांधी ने 15 हजार जनसमूह को संबोधित करते हुए हिन्दी के प्रचार-प्रसार का शंखनाद किया था। महात्मा गांधी ने महाराजा होलकर से अनुरोध किया था कि आपके राज्य के सभी विभागों में हिन्दी का प्रयोग को बढ़ावा दें।
सेठ हुकुमचंद ने रखा था प्रस्ताव
ब्रिटिश गवर्नमेंट ने अपने नोट तथा सिक्कों से हिन्दी (देवनागरी) के अक्षरों को हटा लिया था। इस पर सम्मेलन में रोष प्रकट करते हुए पुन: अमल में लाने की आवाज उठी थी। यह प्रस्ताव इंदौर के सर सेठ हुकुमचंद ने प्रस्तुत किया था। इसका समर्थन महात्मा गांधी तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने किया। बाबू राजेंद्र प्रसाद प्रस्ताव लाए कि भारत के सभी विश्वविद्यालयों में विज्ञान, इतिहास तथा भूगोल के प्रश्नों के उत्तर हिन्दी व अंग्रेजी में लिखना परीक्षार्थी की मर्जी अनुसार हो।
तस्वीर में बाएं से महाराज बालवेंद्र सिंह ऑफ झालरा पाटन, पं. मुकुंदराम त्रिवेदी, सेठ हुकुमचंद, पं. विष्णुदत्त शुक्ला, महात्मा गांधी और जमनालाल बजाज डेस्क पर। पुरुषोत्तम टंडन, सरदार माधवराव विनायक किबे, पं. शंकर प्रसाद दुबे, डॉ. सरजू प्रसाद, पं. रामजीलाल प्रसाद।
चित्र 29 मार्च 1918 में विलियम डिस्को पार्क (वर्तमान नेहरू पार्क) सभास्थल का।
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