कहीं कांग्रेस की कमजोरी का कारण UPA तो नहीं

नई दिल्ली। कांग्रेस के अंदर चल रहा अंतर्द्वंद्व शुक्रवार को एक बार फिर सतह पर आ गया जब कुछ नेताओं ने पार्टी के चुनावी हारों की समीक्षा की मांग कर दी। इतना ही नहीं, एक पूर्व केंद्रीय मंत्री ने तो यह सवाल भी कर दिया कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यूपीए में शामिल लोगों ने ही कहीं उसकी चुनावी संभावनाओं को कमजोर करने की साजिश तो नहीं रची। कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष की मौजूदगी में यह मांग पार्टी के राज्यसभा सांसदों की मीटिंग में उठी। पार्टी के कुछ नेताओं ने कहा कि चुनावी हारों की ईमानदारी से समीक्षा होनी चाहिए। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पार्टी के गुजरात मामलों के प्रभारी राजीव साटव सहित कई सांसदों ने बैठक में कहा कि कांग्रेस की कमजोर होती हालत का संबंध कहीं यूपीए सरकार के प्रदर्शन से तो नहीं है। उन्होंने इसके विश्लेषण की भी मांग की। ने किया समर्थन पार्टी में असंतोष की खबरों पर प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि कांग्रेस के पतन में यूपीए की भूमिका की समीक्षा की मांग में कोई बुराई नहीं है। तिवारी ने तो पार्टी के पुराने नेताओं पर अप्रत्यक्ष निशाना साधते हुए यह तक कह दिया कि कहीं यूपीए की संभावनाओं को कमजोर करने की साजिश अंदर से ही तो नहीं रची गई, इसकी समीक्षा भी होनी चाहिए। पुराने नेताओं पर निशाना तिवारी ने ट्विटर पर लिखा कि 2014 में कांग्रेस की हार के लिए यूपीए जिम्मेदार था या नहीं, यह वाजिब सवाल है और इसकी जरूर पड़ताल होनी चाहिए। इतना ही महत्वपूर्ण यह पता करना भी है कि कहीं यूपीए को हराने की साजिश उसके अंदर से ही तो नहीं रची गई। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के हार की समीक्षा की भी मांग रखी। तिवारी ने आगे लिखा कि सत्ता से बाहर होने के 6 साल बाद भी यूपीए के खिलाफ एक भी आरोप साबित नहीं हुए। उनका इशारा 2जी स्पेक्ट्रम मामले में हुए कथित घोटाले की ओर था जिसे बीजेपी ने 2014 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था। नेतृत्व के मुद्दे की भी चर्चा तिवारी के ट्वीट से एक दिन पहले ही पार्टी के कुछ नेताओं ने आत्म अवलोकन की मांग रखी थी। उन्होंने कहा था कि इस बात की समीक्षा होनी चाहिए कि कांग्रेस कहीं यूपीए की गलतियों की सजा तो नहीं भुगत रही है। सूत्रों की माने तो गुरुवार को हुई मीटिंग में पार्टी में नेतृत्व का मुद्दा सुलझाने की मांग भी उठी। यहीं नहीं, इस मुद्दे पर पार्टी के पुराने और नए नेताओं के बीच मतभेद भी स्पष्ट दिखा। युवा नेताओं की निराशा से टेंशन हाल के दिनों में कांग्रेस के युवा नेताओं की पार्टी नेतृत्व से निराशा कई बार सामने आ चुकी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राहुल गांधी के करीबियों में शामिल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया का बीजेपी में जाना इसी का नतीजा था। पार्टी के एक और युवा नेता और उप मुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट इन दिनों राजस्थान में अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किए हैं। इन घटनाओं से पार्टी के अंदर व्याकुलता का माहौल है। पार्टी का मानने से इंकार कांग्रेस हालांकि, खुले तौर पर पार्टी के अंदर असंतोष और पुराने एवं नए नेताओं के बीच टकराव की बात नहीं मान रही। पार्टी इसे काल्पनिक और बीजेपी की प्रोपगंडा फैक्ट्री की ओर से फैलाई जा रही अफवाह करार दे रही है। पार्टी प्रवक्ता जयवीर शेरगिल से जब कांग्रेस में ओल्ड बनाम यंग की लड़ाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे अफवाहों पर प्रतिक्रिया नहीं देते। शेरगिल ने कहा कि पुराने और नए नेताओं के बीच संघर्ष की बातें केवल काल्पनिक हैं और बीजेपी की प्रोपगंडा फैक्ट्री द्वारा फैलाई जा रही हैं। वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि बीजेपी को कांग्रेस के आंतरिक संघर्षों की बजाय कोरोना वायरस और चीन के साथ चल रहे संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। शेरगिल ने दावा किया कि कांग्रेस पूरी तरह एकजुट है और 2024 के चुनावों में और मजबूत होकर उभरेगी। समीक्षा की मांगों के बारे में पूछे जाने पर वे यह कह कर टाल गए कि जीत हो या हार, कांग्रेस हमेशा अपने प्रदर्शन की समीक्षा करती है। (देश-दुनिया और आपके शहर की हर खबर अब Telegram पर भी। हमसे जुड़ने के लिए और पाते रहें हर जरूरी अपडेट।)


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