पेइचिंग चीन से फैले कोरोना संक्रमण के कारण आज पूरी मानवता कराह रही है लेकिन चीन अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए कुछ और ही साजिश रच रहा है। हाल के दिनों में उसने भारत से लगती लद्दाख सीमा पर अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं वहीं, ताइवान पर सैन्य कार्रवाई की धमकियां भी दे रहा है। चीनी जनता का ध्यान कोरोना के कहर से बचाने के लिए चिनफिंग प्रशासन पूरी तरह से उग्र राष्ट्रवाद और विस्तारवादी नीतियों को बढ़ाने में जुटा है। चीनी संसद में जनरल की चेतावनी के वरिष्ठ जनरल ली जुओचेंग ने Anti-Secession Law की 15वीं वर्षगांठ के अवसर पर कहा कि हमें ताइवान पर सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा। सैन्य कार्रवाई के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है जिससे ताइवान को स्वतंत्र होने से रोका जा सकता है। बता दें कि चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखता है। यह कानून ताइवान पर सैन्य कार्रवाई के लिए चीन को कानूनी आधार देता है। सैन्य कार्रवाई अंतिम विकल्प ज्वॉइंट स्टाफ डिपार्टमेंट के चीफ और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के मेंबर ली जुओचेंग ने ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल में कहा कि अगर शांतिपूर्ण तरीके से ताइवान की चीन में विलय की संभावना खत्म हो जाती है तब सैन्य कार्रवाई ही अंतिम विकल्प है। इस काम में हमारा साथ ताइवान की जनता भी देगी। किसी भी अलगाववादी भावना के लिए चीन में कोई जगह नहीं है। क्यों है चीन और ताइवान में तनातनी 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने के नेतृत्व वाले कॉमिंगतांग सरकार का तख्तापलट कर दिया था। जिसके बाद चियांग काई शेक ने ताइवान द्वीप में जाकर अपनी सरकार का गठन किया। उस समय कम्यूनिस्ट पार्टी के पास मजबूत नौसेना नहीं थी। इसलिए उन्होंने समुद्र पार कर इस द्वीप पर अधिकार नहीं किया। तब से ताइवान खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना मानता है। ताइवान को अपना हिस्सा मानता है चीन चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है। पार्टी इसके लिए सेना के इस्तेमाल पर भी जोर देती आई है। ताइवान के पास अपनी खुद की सेना भी है। जिसे अमेरिका का समर्थन भी प्राप्त है। हालांकि ताइवान में जबसे डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी सत्ता में आई है तबसे चीन के साथ संबंध खराब हुए हैं।
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